Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ अमूलभावानुवाद । शाखाका टूटना (१) सूर्यका अस्त होना (२) चालनीके समान छिद्र सहित चन्द्रलमण्डलका उपय (३) बारह फणवाला सर्प (8) पीछे लौटा हुआ देवताओंका मनोहर विमान (५) अपवित्र स्थान पर उत्पन्न हुआ विकसित कमल (1) नृत्य करता हुआ भूतोंका परिकर (७) खद्योतका प्रकाश (८) अन्तमें थोड़ेसे जलका भरा हुआ तथा बीचमें सूखा हुआ सरोवर (९) सुवर्णके भाजनमें श्वानका खीर खाना (१०) हाथीपर चढ़ा हुआ बन्दर (११) समुद्र का मर्याद छोड़ना (१२) छोटे २ बच्चोंसे धारण किया हुआ और बहुत भारसे युक्त रथ (१३)ऊंट पर चढ़ा हुमा तथा धूलिसे आच्छादित राजपुत्र (१४) देदीप्य. मान कान्तियुक्त रत्नराशि (१५) तथा काले हाथियोंका युद्ध (१६) इन स्वप्नोंके देखनेसे चन्द्रगुप्तिको बहुत आश्चर्य हुआ। और किसी योगिराजसे इनके शुभ तथा अशुभ फलके पूछनेकी अभिलाषाकी ॥१०-१७॥ पोया इसमान ददशोऽऽअर्यकारकान् । पात्रपादपयाखाया मामलमन वे ॥ वतीय तितक्षमचन्तं विधुमण्डलम् । तुरीयं फणिनं समे फणद्वादशमण्डितम्॥११॥ विज्ञान माफिनो कर्म व्यापटन्तं विमाहुरं । फममं तु पवारस्थ मूत्यन्त मतान्दम् ॥ वदोतोयोतमहावीरमान्वयजल परः । मध्ये शुष्क ईमपाने पुनः क्षीरामभक्षणम् || १४ | शाखामृगं गजास्यमाधि फुलापनम् । शाममा नपा पत्तभूरिभारमतं रपम् ॥१५॥ रामपुत्रं मयास्वं रजसा पिहितं पुनः बिरामि पनकान्ति युवं बासितदन्तिनोः ॥15॥ सानिमाविमासानिमित. 'मानसः । पियनिन पिकतं तेषां शुषाशमम् ॥ १७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129