Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 1073
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०१०) अष्टाङ्गहृदयेतिस पछि खट्टे रसोंसे धोके पीछे पानियोंसे धोवै काली निशीत श्वेतगोकर्णी बेलपत्रकी जड गिलोयसे लेपकरै ॥ १९ ॥ विषके शोजेको नाशनेवाले अन्य औषधोंसे लेपकरै अथवा शीघ्र सिरांको छुडावै ॥ . छर्जनं नीलिनीकाथैःशुकाख्याकोल्लयोरपि ॥२०॥ और नीलिनीके काथोंसे और शिरस तथा अंकोलीके काथसे वमन करवि ॥ २०॥ कोशातक्याः शुकाख्यायाः फलं जीमूतकस्य च ॥ मदनस्य च संचूर्ण्य दन्ना पीत्वा विषं वमेत् ॥२१॥ कडवीतोरई शिरसका फल देवताडका फल मैनफल इन्होंके चूर्णको दहीके संग पानकरके विषका वमन करै ॥ २१॥ वचामदनजीमूतकुष्ठं वा मूत्रपेषितम् ॥ पूर्वकल्पेन पातव्यं सर्वोन्दुरविषापहम् ॥ २२ ॥ वच मैनफल देवताड कूट इन्होंको गोमूत्रमें पीस दहीके संग पानकरै, इसको पानकरके सब प्रकारके मूसोंका विष नष्ट होताहै ॥ २२ ॥ विरेचनं त्रिवृन्नीलित्रिफलाकल्क इष्यते ॥ निशोत कालादाना त्रिफला इन्होंके कल्कका जुलाब वांछितहै । अंजनं गोमयरसो व्योषसूक्ष्मरजोऽन्वितः॥२३॥ और गोवरके रसमें सुंठ मिरच पीपलका सूक्ष्म पिसाहुआ चूर्ण मिला अंजन करावै ॥ २३॥ कपित्थगोमयरसो मधुमानवलेहनम् ॥ कैथ और गोबरके रसमें शहदको मिलाके चार्ट | तन्दुलीयकमूलेन सिद्धं पाने हितं घृतम् ॥ २४॥ द्विनिशाकटभीरक्तायष्टयाकैर्वाऽमृतान्वितैः॥ आस्फोतमूलसिद्धं वा पञ्चकापित्थमेव वा ॥२५॥ और चौलाईकी जडसे सिद्धकिया घृत पीनमें हितहै ।। २४ ॥ हलदी दारुहलदी श्वेतगोकर्णी मजीठ मुलहटी गिलोयसे अथवा अनंतमूलमें सिद्धकिया अथवा कैथके जड छाल पत्र फल पुष्पमें सिद्धकिया घृत पीनेमें हितहै ॥ २५॥ सिन्दुवारनतं शिग्रु बिल्वमूलं पुनर्नवा ॥ वचाश्वदंष्ट्राजीमूतमेषां क्वाथं समाक्षिकम् ॥ २६ ॥ पिबच्छाल्योदनं दना भुंजानो मूषिकार्दितः॥ संभालू तगर सहोजना बेलपत्रकी जड शांठी वच गोखरू देवताडके क्वाथमें शहद मिलाके ॥ २६ ॥ पीवै मूसासे पीडितहुआ मनुष्य दहीके संग शालीचावलको खावै ॥ For Private and Personal Use Only

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