Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 1101
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०३८) अष्टाङ्गहृदयेशुद्धकाये यथाशक्ति वृष्ययोगान्प्रयोजयेत् ॥ शुद्ध शरीरमें जठाराग्निके अनुसार वृष्ययोगोंको प्रयुक्त करै ।। शरेक्षुकुशकाशानां विदार्या वीरणस्य च ॥१२॥ मूलानि कंट कार्याश्च जीवकर्षभको बलाम् ॥ मेदेद्वे द्वे च काकोल्यौ शूर्पपण्यौँ शतावरीम्॥१३॥अश्वगंधामतिबलामात्मगुप्तां पुनर्नवाम्। वीरां पयस्यां जीवंतीमृद्धिं रास्त्रां त्रिकंटकम्॥१४॥ मधुकं शालिपर्णी च भागांस्त्रिपलिकान्पृथक् ॥ माषाणामाढकं चैतविद्रोणे साधयेदपाम्॥१५॥रसेनाढकशेषेण पचेत्तेन घृताढकम्॥ दत्त्वा विदारीधात्रीक्षुरसानामाढकाढकम् ॥ १६ ॥ घृताच्चतुगुण क्षीरं पेष्याणीमानि चावपेत्ावीरां स्वगुप्तां काकोल्यौ यष्टीं फल्गूनि पिप्पलीम् ॥१७॥ द्राक्षांविदारी खर्जरं मधुकानिशतावरीम् ॥ तत्सिद्धपूतं चूर्णस्य पृथक्प्रस्थेन योजयेत् ॥ ॥१८॥शर्करायास्तुगायाश्च पिप्पल्या कुडवेन च ॥ मरिचस्य प्रकचेन पृथगर्द्धपलोन्मितैः॥ १९॥त्वगेलाकेशरैः श्लक्ष्णैःक्षौद्राद्विकुडवेन च ॥ पलमात्रं ततः खादेत्प्रत्यहं रसदुग्धभुक्॥ ॥२०॥ तेनारोहति वाजीव कुलिंग इव हृष्यति ॥ सर ईख कुशा कांस बिदारीकंद कालावाला ! १२ । इन्होंकी जद और कटेहलीकी जड जीवक ऋषभक खरेहटी मेदा महामेदा काकोली क्षीरकाकोली रानमूंग रानउडद शतावरी ।। १३॥ असगंध, गंगेल, कौंच शांठी ब्राह्मी दूधी त्रायमाण ऋद्धि रायसण गोखरू ॥ १४ ॥ मुलहटी शालपर्णी ये सब बारह तोले लेबै इन्होंको और २५६ तोले उडदोंको २०४८ तोले पानीमें साधे ॥ १५ ॥ जब २५६ तोलेरस शेषरहै तब २५६ तोले घृत २५६ तोले विदारीकदंका रस२५६ तोले आमलेका रस २५६ तोले ईखका रस॥१६॥और १०२४ तोले दूध और पीसीहुई वक्ष्यमाण औषधैं ब्राह्मी कौंचके बीज काकोली क्षीरकाकोली मुलहटी कालीगूलरका फल पीपल॥१७॥ दाख विदारीकंद खिजूर महुआके फूल शतावरी इन्होंसे सिद्ध और वस्त्रमें छानके पवित्र करै तिस द्रव्यमें पृथक २ चौसठ २ तोले प्रमाणसे योजितकर ॥१८॥ खंडको और वंशलोचनको १६तोले पीपल ४ तोले मिरच दोदो तोले प्रमाणसे ।।१९।। दालचीनी इलायची केशर और ३२ तोले शहद इन सबोंको मिलाके पीछे मांसका रस और दूधको खाताहुआ नित्यप्रति चार तोले भर इस औषधको खावै॥२०॥इससे घोडेकी समान आरोहित होताहै और गर्गइआ पक्षीकी समान आनंदित होताहै।। विदारीपिप्पलीशालिप्रियालेक्षुरकाद्रजः॥२१॥ पृथक्स्वगुप्ता मूलाच कुडवांशं तथा मधु ॥ For Private and Personal Use Only

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