Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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दशम परिच्छेद
अर्थ - जो दयारहित जीवनकौं हनै है, बहुरि झूठ अर कठोर वचनको बोलै है, अर बिना दिये धनकौं अनेक प्रकार हरै है, अर कामबाण करि पीड़ित भया सन्ता स्त्रीकों से है ||३६|| अर नाना दोषनिका करनेवाला जो परिग्रहता सहित है, अर नाहीं है वशीभूत मन जाका ऐसा भया सन्ता मदिराकों पीवै है, अर कीड़ाके समूहकरि व्याप्त जो मांस ताहि अर पाप कर्म करणे विषं प्रवीण है ||३७|| अर दृढ़ कुटुम्ब परिग्रहके
जरा सहित है, बहुरि समताशील गुणव्रत इन करि वर्जित है तिस विषयलोलुपीक आचार्य अपात्र कहैं हैं, कैसा है सो तीव्र - कषायरूप सर्पकरि सेवित हैं ॥ ३८॥
अपात्र है ।
भावार्थ – सम्यक्त अर व्रतादिक इन दोऊनि करि रहित है सो
विबुद्धय पात्र विशुद्धबुद्धया
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बहुषेति पंडितै, गुणदोषभाजनम् ।
परिगृह्य पावनं,
विहाय गह्यं शिवाय दानं निधिना
वितीर्यते ॥३६॥
अर्थ - या प्रकार पंडितकरि निर्मल बुद्धिकरि गुण अर दोषनिका भाजन जो बहुत प्रकार पात्र ताहि जानकै अर निंदनीककौं त्यागिकै अर पवित्रकौं ग्रहण कर मोक्षके अर्थ विधि सहित दान दीजिए ।
भावार्थ - या प्रकार गुण दोषन पात्र अर अपात्रकौं जानिक मोक्ष अर्थ अपात्रनिकों त्यागकै पात्रनिकौं दान देना योग्य है ॥ ३६॥
आगे उत्तम पात्रनिक आहार देनेकी विधि कहैं हैं
कृतोत्तरासंगपवित्रविग्रहो, निजालयद्वारगतो निराकुलः ।
ससंभ्रमं स्वीकुरुते तपोधनं, नमोऽस्तु तिष्ठेति कृतध्वनिस्ततः ॥४०॥