Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन परम्परा में उपाध्याय पद | ४१७
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गया है। आचार्य का अर्थ ही है आचार की शिक्षा देने वाले।४ नव दीक्षित को पहले आचार-सम्पन्न करने के बाद फिर विशेष ज्ञानाभ्यास कराया जाता है इसलिए आचार्य के बाद उपाध्याय का स्थान सूचित किया गया है। आचारशुद्धि के बाद ज्ञानाभ्यास कर साधक आध्यात्मिक वैभव की प्राप्ति कर लेता है। प्रस्तुत में हम उपाध्याय के अर्थ एवं गुणों पर विचार करते हैं। उपाध्याय : शब्दार्थ
उपाध्याय का सीधा अर्थ शास्त्र-वाचना या सूत्र अध्ययन से है। उपाध्याय शब्द पर अनेक आचार्यों ने जो विचार-चिन्तन किया है, पहले हम उस पर विचार करेंगे।
भगवती सूत्र में पांच परमेष्ठी को सर्वप्रथम नमस्कार किया है, वहां 'नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं' इन तीन के बाद 'नमो उवज्झायाणं' पद आया है। इसकी वृत्ति में आवश्यक नियुक्ति की निम्नगाथा उल्लेखित करते हुए आचार्य ने कहा है
बारसंगो जिणक्खाओ सज्झाओ कहिओ बुहे ।
तं उवइस्संति जम्हा, उवज्झाया तेण बुच्चंति ॥५ जिन भगवान द्वारा प्ररूपित बारह अंगों का जो उपदेश करते हैं, उन्हें उपाध्याय कहा जाता है । इसी गाथा पर टिप्पणी करते हुए आचार्य हरिभद्र ने लिखा है
उपेत्य अधीयतेऽस्मात् साधवः सूत्रमित्युपाध्याय: । जिनके पास जाकर साधुजन अध्ययन करते हैं, उन्हें उपाध्याय कहते हैं। उपाध्याय में दो शब्द हैंउप+ अध्याय । 'उप' का अर्थ है-समीप, नजदीक । अध्याय का अर्थ है-अध्ययन, पाठ ।
जिनके पास में शास्त्र का स्वाध्याय व पठन किया जाता है वह उपाध्याय है। इसीलिए आचार्य शीलांक ने उपाध्याय को अध्यापक भी बताया है।
'उपाध्याय अध्यापकः' -आचारांग शीलांकवृति सूत्र २७६ दिगम्बर साहित्य के प्रसिद्ध ग्रन्थ भगवती आराधना की विजयोदया टीका में कहा हैरत्नत्रयेषुद्यता जिनागमार्थ सम्यगुपदिशंति ये ते उपाध्यायाः।
-म० आ० वि० टीका ४६ -ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र रूप रत्नत्रय की आराधना में स्वयं निपुण होकर अन्यों को जिनागम का अध्ययन कराने वाले उपाध्याय कहे जाते हैं। एक प्राचीन आचार्य ने उपाध्याय (उवज्झाय) शब्द की नियुक्ति करते हुए एक नया हो अर्थ बताया है ।
उत्ति उवगरण 'वेति वेयज्झाणस्स होइ निद्देसे ।
एएण हो इ उज्झा एसो अण्णो वि पज्जाओ। 'उ' का अर्थ है-उपयोगपूर्वक । 'व' का अर्थ है-ध्यान युक्त होना । --- अर्थात् श्रुत सागर के अवगाहन में सदा उपयोगपूर्वक ध्यान करने वाले 'उज्झा' (उवज्झय) कहलाते हैं ।
इस प्रकार अनेक आचार्यों ने उपाध्याय शब्द पर गम्भीर चिन्तन कर अर्थ व्याकृत किया है। योग्यता व गुण
यह तो हुआ उपाध्याय शब्द का निर्वचन, अर्थ । अब हम उसकी योग्यता व गुणों पर भी विचार करते हैं ।
शास्त्र में आचार्य के छत्तीस गुण और उपाध्याय के २५ गुण बताए हैं । उपाध्याय उन गुणों से युक्त होना चाहिए। उपाध्याय पद पर कौन आरूढ़ हो सकता है, उसकी कम से कम क्या योग्यता होनी चाहिए? यह भी एक प्रश्न है । क्योंकि किसी भी पद पर आसीन करने से पहले उस व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक एवं शैक्षिक योग्यता को
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