Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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५५२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजो महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
ढाल-आव उरी के जा परी हे कूवेण मत
तर छावेजीव कर्तन सोनार की ॥ए देशी।। अष्टादस बावने के भविक जन मिगसर मास बखाण । सुगण नर साँभलो रे भवियण पूज्य तणां गुण भारी । कृष्ण पक्ष..........'नम कही रे भ० संजम लीधो जाण ॥१॥ आज्ञा पाले निरमली रे भ० करे वचन परमाण ।भ०। भणे गुणे पंडित थया रे भ० बने विवेक रसाण ।सु०॥२॥ मास खमण धुरजाणिये रे भ० तेइस इकवीस जाण ।सु०। कर्म चूर तप आदर्यो रे भ० पनरा तक तप आण ।सु०॥३॥
और तपस्या कीधी घणी रे भ० कहतां नावे पार ।सु०॥ सेर उदियापुर आविया रे भ० विनति करे नर नार ।सु०॥४॥ पूज्य रोड़ीदासजी थाणे रह्या रे भ० नव वसो लग जोय । आतम कारज सारिया रे भ० उपगार विविध होय ।सु०॥५॥ छेलो अवसर आवियो रे भ० संथारो कियो उल्लास । दिवस साढ़ा चार में कियो सुरग में वास ।सु०॥६।। पुजजी पाट विराजिया रे भ० नरसिंघदास जी नाम । लखण पढ़न उपदेश नो रे भ० और न बीजो काम ।सु०॥७॥ ढाल भणी ए तीसरी ए भ० सुणतां लागे प्रेम । रिख मानमल इण पर कहेरे भ० वरते कुसल न खेम ।सु०॥८॥
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सेवा भक्ति कीधी घणी गुरु गुरु भायां री जोय । आतापन लीधी घणी कर लाम्बा करी दोय ।। ग्राम नगर पुर विचरिया कीदो भव जीवां उपकार । अनार्य आर्य किया धर्म दिपायो सुध सार ।।
ढाल-वामानन्द पासजिणंदजी प्रभुजी॥ए देशी।। सोले चोमासा उदियापुर मांय जी
पुजजी कीदा आप हर्ष उछाया। हे मार्ग दिपायो आप जस लियो ए। हाँ ए दर्शन आपरो ए निवारण पाप रो ए पुजजी महाराज ॥१॥ श्री जी दुवारे नव किया चोमास नर नारी हुवा हर्ष उल्लास । हे दर्शन करीने पाप दूरो कियो ए। हां ॥२॥ सनवाड़ माहे एक चोमासो जोय जी पोटलां माहे एक हीज होय । हे गंगापुर माहे एकज जाणिये हे । हां ॥३॥
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