Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 636
________________ महाराज । अभिनन्दन म स्वगम-सूत्र | पं० रत्न मुनि श्री कन्हैयालाल जी 'कमल' का वक्तव्य आप और हम आज एक महान् सन्त का अभिनन्दन कर रहे हैं । उस सन्त पुरुष का नाम है, अम्बालाल जी महाराज श्री के नाम में दो शब्द हैं अम्बा और लाल । अम्बा माता का सूचक है। सारे जगत की माता को जगदम्बा कहते हैं। हाँ तो, अम्बा का अर्थ माँ ही है और इसके बाद जो शब्द है लाल; यदि माँ के साथ इसे जोड़कर बोले तो “माई का लाल" यह वाक्य बनेगा । हमारे यहाँ एक वाक्य है, "है कोई मांई का लाल" जो यह कार्य करे। जो भी हिम्मत, बहादुरी का बड़ा कार्य होता है, उसे करने वाला कोई मांई का लाल होता है। तो हमारे प्रवर्तक श्री मांई के लाल हैं। पिछले पचास वर्षों से यह मांई का लाल संयम के पवित्र पथ पर बड़ी दृढ़ता के साथ बढ़ता चला आया । आप सभी यहाँ अभिनन्दन करने आये हैं किन्तु " है कोई मांई का लाल" जो इनके जैसा शुद्ध संयम धारण कर सच्चा अभिनन्दन करे । प्रत्येक मुनि मांई का लाल होता है । कोई कहे आपने माँ का त्याग कर दिया, अब आपके कौन सी माँ है ? तो इस पर भी थोड़ा विचार कर लेते हैं । मुनि एक माँ को छोड़ता है किन्तु वह कई माताओं का लाल हो जाता है। जैन शास्त्रानुसार "अट्ठपवयणमाउण" अर्थात् पाँच समिति और तीन गुप्ति इस तरह इन आठों को प्रवचन मातृ कहा है। आप समझ गये होंगे कि मुनि के आठ माताएँ होती हैं । हमारे प्रवर्तक श्री भी आठ माताओं के लाल हैं अतः इनका 'अम्बालाल' नाम बहुत ही सार्थक है । अन्त में हम हार्दिक श्रद्धापूर्वक आपका अभिनन्दन करते हुए आपके चिरायु होने की मंगल कामना करते हैं। मधुरवक्ता श्री मूल मुनिजी महाराज का वक्तव्य भाइयो ! नदी का एक रूप है अपनी सीमा में बहना, मधुर-मधुर बहती नदी आसपास के किनारों को हरामरा कर देती है, किनारे बसे गांवों को नवजीवन प्रदान करती है। ☆ नदी का एक दूसरा रूप भी है, जिसे बाढ़ आना कहते हैं, जब नदी अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर बहने लगती है तो वह अपनी सुन्दरता भी नष्ट कर देती है और आसपास के खेतों, खलिहानों को बरबाद कर दिया करती है। यह नदी का विकृत तथा भयंकर रूप है मानव भी अपने जीवन में दो तरह से बहते हैं, नदी की तरह । कुछ मर्यादाहीन उद्दंड बनकर अपने आपको और समाज को विकृत किया करते हैं। कुछ सज्जन ऐसे होते हैं जो अपने जीवन में नदी के प्रथम रूप की तरह मर्यादित रूपेण चला करते हैं । वे स्व और पर का कल्याण किया करते हैं। सत्पुरुषों का यही रूप होता है । आज यहाँ पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज के अभिनन्दन हेतु आप और हम उपस्थित हैं । इस महापुरुष के जीवन में नदी का प्रथम रूप देखा जा सकता है। ये पिछले पचास वर्ष से स्व, पर के कल्याण स्वरूप, संयमी जीवन धारण कर भूमंडल पर विचरण कर रहे हैं । के साथ । ....... सरलता, मधुरता तथा संयम के साक्षात् प्रतीक प्रवर्तक श्री का हम हार्दिक अभिनन्दन करते हैं । प्रवर्तक श्री जैसे गुणवान मुनिराजों के पवित्र सानिध्य में श्रमण संघ गौरवान्वित और जयवन्त है । प्रवर्तक श्री दीर्घायु होकर अपनी संयम की प्रभा से भव्यों के जीवन को आलोकित करें इसी शुभकामना ✩ M pahes * 000000000000 000000000000 100001 how jainenoorg "--"","SAT-CL

Loading...

Page Navigation
1 ... 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678