Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 62
________________ जैन आगम : एक परिचय ] ६१ २०२ - ३) और व्यवहारसूत्र (उद्देशक, १० गा. २० - २१) के अनुसार निशीथ के अध्ययन के लिए यह प्रतिबन्ध लगाया गया है किकम से कम ३ वर्ष का दीक्षित हो, गाम्भीर्य आदि गुणों से युक्त हो, कांख में बालयुक्त और १६ वर्ष की आयु वाला हो, वही निशीथ का वाचक हो सकता है । लेकिन साथ ही व्यवहारसूत्र ( उद्देशक ३, सू. ३ और सूत्र १ ) में यह विधान भी है कि निशीथ का ज्ञाता हुए बिना कोई श्रमण न स्वतन्त्र विचरण कर सकता है और न उपाध्याय आदि पद का अधिकारी ही बन सकता है। इसीलिये व्यवहारसूत्र में निशीथ को एक मानदण्ड के रूप में प्रस्तुत किया गया है और निशीथ का ज्ञाता हुए बिना कोई साधु प्रायश्चित देने का अधिकारी नहीं माना गया है । अतः इस शास्त्र का महत्व स्पष्ट है । इतना महत्वपूर्ण ग्रन्थ होते हुए भी इन मर्यादाओं के कारण ही इसका वाचन सभा में नहीं होता । विषयवस्तु निशीथ में चार प्रकार के प्रायश्चित्तों का वर्णन है । इसके २० उद्देशक हैं । १९ उद्देशकों में प्रायश्चित्त का विधान है और २० वें उद्देशक में प्रायश्चित्त देने की प्रक्रिया का निरूपण है । इस आगम में वर्णित चार प्रकार के प्रायश्चित्त ये है - (१) गुर मासिक, (२) लघुमासिक, (३) गुरुचातुर्मासिक और (४) लघुचातुर्मासिक। पहले उद्देशक में गुरुमासिक प्रायश्चित्त का विधान है, दूसरे से पाँचवें उद्देशक में लघुमासिक का, छठे से ग्यारहवें तक में गुरुचातुर्मासिक का और बारहवें से उन्नीसवें तक में लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित का विधान दिया गया है। बीसवें उद्देशक में आलोचना एवं प्रायश्चित्त करते समय लगने वाले दोषों का For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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