Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 98
________________ जैन आगम : एक परिचय ] ९७ में स्वर्णयुग के नाम से प्रसिद्ध है । इस युग में आगमों पर ही नहीं, निर्युक्ति और चूर्णियों पर भी टीकाएँ लिखी गई। इन टीकाओं की भाषा संस्कृत है । इनमें जैन आगमिक तत्त्वों के विवेचन के साथसाथ जैनेतर परम्पराओं का भी आकलन है । उस युग की सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक स्थिति का भी इससे ज्ञान प्राप्त होता है टीकाओं का सम्पूर्ण भारतीय संस्कृत साहित्य में गौरवपूर्ण स्थान है । 1 टीकाओं के लिए आचार्यों ने वृत्ति, विवृत्ति, विवरण, विवेचन, व्याख्या, वार्तिक, दीपिका, अवचूरि, अवचूर्णि, पंजिका, टिप्पण, टिप्पनक, पर्याय, स्तबक, पीठिका, अक्षरार्थ आदि अनेक नामों का प्रयोग किया है । यह युग संस्कृत भाषा का उत्कर्षकाल था । अन्य दार्शनिक जैन धर्म के उन्मूलन का प्रयास कर रहे थे । खण्डन - मण्डन और शास्त्रार्थ के लिए आह्वान किये जाते थे । वादमल्ल सम्पूर्ण देश में घूम-घूमकर अमारी पटह बजाते थे । इनकी भाषा संस्कृत थी । अतः इनका सामना करने के लिए जैन आचार्यो को भी आना पड़ा। उन्होंने भी इन्हीं की भाषा-संस्कृत भाषा में अकाट्य उत्तर दिये और संघ तथा जिनधर्म की विजयपताका फहराई । we टीकाएँ और टीकाकार- टीका साहित्य के रचयिता व्याकरण, साहित्य तथा भाषा विज्ञान के प्रकाण्ड पण्डित थे । वे यन्त्र-मन्त्रतन्त्र रहस्यों के ज्ञाता तथा इतिहास, भूगोल, रसायनशास्त्र, शरीरविज्ञान, औषध - विज्ञान आदि विद्याओं के पारगामी विद्वान थे । उन्हें सामाजिक परम्पराओं का भी अच्छा ज्ञान था । प्रमुख टीकाएँ और टीकाकार निम्न है: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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