Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 96
________________ ९५ जैन आगम : एक परिचय] के अनुसार इनकी लिखी निम्न चूर्णियाँ मानी जाती हैं -(१) निशीथविशेषचूर्णि, (२) नन्दीचूर्णि, (३) अनुयोगद्वारचूर्णि, (४) आवश्यक चूर्णि, (५) दशवैकालिक चूर्णि, (६) उत्तराध्ययनचूर्णि, (७) सूत्रकृतांगचूर्णि। नन्दीचूर्णि- की विशेषता यह है कि इसमें केवलज्ञान, केवलदर्शन के बारे में तीन मत-(१) योगपत्य, (२) कृमिकत्व, और (३) अभेद देकर लेखक ने क्रमभावित्व का समर्थन किया है। अनुयोगद्वारचूर्णि में आवश्यक पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। आवश्यकचूर्णि में संस्कृत के अनेक श्लोक उद्धृत किये गये हैं । इसकी शैली में ओज और प्रवाह विशेष मात्रा में है। दशवैकालिकचूर्णि में आचार्य शय्यम्भव का जीवन-वृत्त भी दिया गया है। उत्तराध्ययनचूर्णि में क्रोध निवारण के उपाय, सप्त व्यसन आदि पर उदाहरणसहित प्रकाश डाला गया है। आचारांगचूर्णि में श्रमणाचार की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए प्रत्येक विषय के विवेचन में उसी पर ध्यान रखा गया है। सूत्रकृतांगचूर्णि में विषय विवेचन संक्षिप्त होने पर भी बहुत स्पष्ट है। निशीथविशेषचूर्णि का चूर्णि-साहित्य में विशेष स्थान है। इसमें तत्कालीन सामाजिक, दार्शनिक सामग्री का अच्छा संकलन है। ऐतिहासिक एवं पौराणिक कथाएँ भी है तथा धूर्ताख्यान, तरंगवती, मलयवती, मगधसेना आदि की प्रेरक कथाएँ भी है। — दूसरे चूर्णिकार सिद्धकेन सूरि हैं। ये सिद्धसेन दिवाकर से भिन्न हैं । इन्होंने जीतकल्पबृहच्चूर्णि लिखी है। बृहत्कल्पचूर्णि के रचयिता प्रलम्ब सूरि हैं। इनका समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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