Book Title: Agam Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 585
________________ मणुस्सखेत्त आगम शब्दकोश मणोगय से ११६, १८६, १९०,२०१, २५३, ३३६,३५६,३६० मणुस्सत्त [ मनुष्यत्व] ठा०४१६१४. भ०२।६०,६५,१४१ से ३६३, ३८०, ३८१; २।८५; ५।६४, ६८ से ७०,७२ मणुस्सत्ता [मनुष्यता] ठा० २।१७३, १७४; ४।६१४, से ७४, १३६, १३७, १८५,१६०, १८६, २२२, २३५, ६१५ २४६, २५१,५।६२, ६।३२,१३४,१३५, १८५;७।३६, मणुस्सपंचिदिय [ मनुष्यपञ्चेन्द्रिय] सम० प्र०१५६ ४२, ४७, ५१ से ५३, ५६, ५७, १०५, ११२, १६२, मणुस्सभवत्थ [मनुष्यभवस्थ] भ०८।११३ १९३, २०६; ८।६, १३, २२,२३, ३०, ३४, ५४,५६, मणुस्सलोय [मनुष्यलोक] भ० १२।१२३; १३।६८ ५८, ६१ से ६३, ८७,६१, ६२, ६४,१०६,१२५,१३६, मणुस्ससेणिया [मनुष्यश्रेणिका] सम० प्र० १०१,१०३ २२२, २६०, २६२, २६४, २६७, २६८, ३०३, ३०६, मणुस्साउय [मनुष्यायुष्क] सम० ३१।१ ३६८, ३७२, ३७५, ३७७, ३८२, ३८४, ३६१, ३६५, मणुस्साउयत्ता [मनुष्यायुष्कता] ठा०४।६३० ४००,४०६, ४२७,६७,४६, ६८,८६,१०७से११३, मणस्सावत्ता मनुष्यावत्त सम०प्र०१०३ ११६, १३१, २३३, २४१, २४४; १०११०२; ११॥३, मणस्सिंद [मनुष्येन्द्र ठा० ३१३.भ० १२।१६५ : ३४, ३६, १२८, १२६; १२।११६,१२३, १४१,१६४, ठा० ४।५६२, ५६४, ५६५, ६४२, १६६, १७०,१७४,१८५से १८७; १३।६८,१३२,१३८, ७७१, १५३; ८।१०६. भ० २।८३; ५।१८५, १८६, १४१, १४।६ से ८, २०,३५,६७,८१,१२८१६।२२, २३५; ६।१३५; ८।३०३, ३०६; १३।१८ .२४, ८०१७।१४,१५,२४,३०,३६,४०,१८।१०,११, मणस [मनुष्य] सू० १।१२।६. सम० १५७; ४७११.भ. १३ से १६, २६, २९, ३०, ६६, ६७, ६६ से ७१,६४, ११२००, २०५ से २०७; ५६५, ६६, ११५, ६।६५; १०२, १०३, १३१, १७४से १८१,१८४, १८६,१८६; ७।१४६, १४६,१५६;८।३६८,४८३,४८४;२४।१०६, १९५६, ६१; २०१६०, ६२,२११७; २४११, ६१,६५, ३५६; २६।१७.नाया०१।८।१७३; १।१२।१६.पण्हा० १०५, १०८, १०६, ११६,१३४से १३६, १६३, १९८ ७ ४, ५, १८,२० से २००, २०२, २३१,२३३,२३७,२७१ से २७३,२७५, मणो [मनस ] ठा० ७।६६, ७०, १४३, १४४६।६२ २७६, २६५, २६६, २६८, ३०३, ३०४,३०८, ३१०, मणोगय [मनोगत आ० चू० १५१३३.सम० १०१२.भ. ३११, ३२०, ३३१,३३३,३४३ से ३४५, ३४७,३४८, २०३१, ४५ से ४६,६६,६७; ३३३, ३६,१०२, १०४, ३५१, ३५२, ३५४; २५५१३६ से १३८,२६।१८,२०, १०६, ११२, ११५, ११६, १३१; ५३८५८।१८७%; २७, ३०, ३२, ५१ से ५३, ५५, २८।१; ३०६,१०, ६।१५८, २२८; १११५६, ७२,८५,१८८,१६५:१२।६, ...१४ से १७, १९,२१,२३ से २७,२६,३४,३८,४१२१५, १५; १३।१०४, १०५, ११०, १२०; १५१५३,७५, ३६, ५०, ६३, ७१. नाया० १४२; १।१३।२३; १२८,१२६, १३२, १४१,१४८,१४६,१५२,१६३५५; १।१६।१३४. उवा० १०२०२।१०,४३, ४६, ३।१०; १८.२०५.नाया०११११४८,५३,५६,१५४, १५५,१६६, ४११०, ११०; ६।१०, २६, ७।१५; ८।११।१०; २०४, २०५; १।२।१२, ७१; १।५।६५; ११८, १२४; - १०१०. अंत० ३८६; ६६४. विवा० १११३६% . ११७।६,७,६,१०,२२,२५,११८७६,१६४;१।१२।१६, १।२।६४; १।४।२८,१८१८२।२।१२।३।१२।१०।१ २६; १११३।१५, ३५, ३६,३६% १११४१२२,३७,५०, मणुस्सखेत्त [मनुष्यक्षेत्र] ठा०२।४४७.सम०६६।२;प्र० ६३, ८२; १।१५।६; १।१६।१६, १०४, ११८, १६०, १६६. भ० ८।१८७; ६।४; ३४१५, ७, ८ २७२, २८५, २८६; २।१।१२,३८. उवा० ११५७,६५, मणुस्सगइ [मनुष्यगति] सम०प्र० १८० ७३, ७६; २११८, ५४; ३॥१८, ४२,४४,५१,४।१८, मणुस्सगतिय [मनुष्यगतिक] भ० ८।११३ ४२, ४४, ५१,५११८,४२,४४, ५१,६।३३,३६७।११, मणुस्सतिरिक्खजोणिय [मनुष्यतिर्यग्योनिक] सू० १७, १८, ५४,७८, ८०,८७,८।१८, २५,२६,६।१८, . . .२।३।८३ २४; १०१८, २४.अंत०१११६३।१३, ३१, ३२,४३, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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