Book Title: Agam Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 794
________________ सूरियकंत अंगसुत्ताणि शब्दसूची __ सेद्वित्त ३३६, ३४०, ३४२; ११।१६६ ; १२।१२८; १४।१२५, सेज्जपडिमा [शय्याप्रतिमा] ठा० ४।४८७ १३२ से १३६;१५।१६४ से १६६ ; १७१६५;१८।१५७. सेज्जा [शय्या आ० ६।२।१; ६।३।२. आ० चू० १।२६; नाया० ११४७ २०, २११ से २५, २७ से ३२, ४४, ४६, से ५६, सूरियकंत [सूर्यकान्त] भ० ११।५८ ७२ से ७४, ७६; ३१२, ३, ७७, ८२ से १५, २६ सू रियमंडल [सूर्यमण्डल] सम० ६६।४ से ६ से २८,६।३ से १५. सू० ११११८६; २।२२७२,२।७।४. सूरियाभ[सूर्याभ] भ० १०७२,६६।१. नाया० १।१३।३; ठा०५।१०२, १०७. सम० २२।१; ३३११; प्र० ८६. २।१।१२ भ० २०६४;७।१६३,८१३१६, ३१६।१, ३२३, ३२५, सूरियाभविमाण [सूर्याभविमान ] भ० ३।२५० ३२८, ६।२२५ से २२८; १११११२, १४६; १६।५४; सूरियावत्त [सूर्यावर्त ] सम० १६।३।२ १८।२१२, २५१५७६. नाया० शश१५२; ११५।४७, सूरियावरण [सूर्यावरण] सम० १६।३।२ ६४,७२, ११०, ११३, ११७ से ११६, १२४, १२५; सूरुत्तरवडेंसग [सूरोत्तरावतंसक ] सम० ५।१६ १।१४।४६;१।१६।१०३,११४,११५,११६१।१६।२३; सूरोदय [सूरोदय] सम० ६३।३ ।। २।११३४,३५, ३८.उवा०११४५, ५५,५६,२।१६,१७; सूरोवराग [भूरोपराग] भ० ३।२५३ ३।१६,१७; ४।१६, १७; ५।१६, १७, ६।१६, १७; सरोवराय [सूरोपराग] ठा० १०।२१ ७।१०,११, १७ से १६८।१६; ६।१६, १७, १०।१६, सूल [शूल] सू० ११५॥३७ ; २।६।२६, २७, २८. सम० १७.पण्हा०७।१६; ८।४ से ६,१०,११ प्र० ६६. पण्हा० १।२८; ३।५. विवा० १।२।६६; सेज्जाकारी [ शय्याकारिणी ] भ० ११।१५६ १।३।६५; १५।२६; १९६ सेज्जातरपिंड [ शव्यातरपिण्ड ] ठा०६।६२ सूलग्ग [शूलाग्र] पण्हा० १।२५; ३।१६ सेज्जा(भूमि) [शय्याभूमि] | ० चू० २।७२; ८।२६ सूलभेय [शूलभेद] पण्हा०१०।१८ सेज्जायरपिंड [शय्यातरपिण्ड] भ० ५।१४० ; ६।१७७ सूला [शूला] सू० १।५।६, २२, ३७ सेज्जायरय [शय्यातरक ] भ० १५२६१, ६३, ६७,६८, सूलाइग [शूलाचित, सूलातिग] नाया० १।६।२७ सेज्जासमिति [शय्यासमिति ] पण्हा ० ८।११ सलाइय[श लाचित, सलातिग] सू० २।२।५८.नाया० सेट्र[श्रेष्ठ] सू० १।६।६,१५, १८ से २०, २२ स २० ___१६१०, २५, २६, २८, २९, ५० सेट्टि [श्रेष्ठिन ] सू०१।२।५.ठा० ६।६२.सम०३०।१।१६. सलाभिण्णय [शूलाभिन्नक ] सू० २।२।५८ भ० २।३०; ३।३३;७।१६६ ; ६।१५८; १११६१, ११५ सलिया [शू लिका] पण्हा० १।१८ से ११८, १६६, १७१, १७२; १३।१०२, १०४, १११, सूव [सूर्प] आ० चू० ११६६ ११५; १५।१७१, १७२ १७५;१८/४० से ५२, २२१. सूव [सूप] सू० १।४।४०. उवा० १।२६ नाया० १११।२४, ८१; श२।१०,५६; ११३३३५।२; सूवणीय [संपनीत] आ० ५।३४ १३५१६, २६, ७०, ११७।६, ४४।१; १११४।४३, ५६, सूसरपरिवादिणी[सुस्वरपरिवादिनी] पण्हा० १०।१४ ६५; १।१६।६७, १३२, १६६, २२६. उवा० १।१३, से [अथ] आ० चू० १।६३. भ० १।४२८ २३,५१,५७; २।१३; ३।१३; ४।१३,५।१३ ; ६।१३; सेउय [सेतुक ] ठा० ५।२१, २२ । ७।३०, ३७, ८।१४; ६।१३; १०।१३. अंत० १११४; सेभिय [श्लेष्मिक ] भ० २।५२,६८; ७।२०३; ६।१५०, ५।१६; ६।३१,३६,३७. पण्हा० ५४.विवा०११११५०, १७७, २१४; १८।२११. नाया० १।१।२०६ ७०,११२।५२,७२,७३, ११३१६५,११४१३६; ११५।२२, सेज्जंस [श्रेयस्, श्रेयान्स] आ० चू० १५।१७. सम० २३, २६; १।६।३७; ११७।१६,३८,१।८।२७;१।६।५७, २३।३, ४; २४।१; ६६।३; ८०११;८४१४;प्र० २२२, ५६; १।१०७, १६; २।१।१३, ३१ २२६३१. भ० २०१६७ सेद्वित्त [श्रेष्ठित्व ] भ० १२।१४६,१५० ७७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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