Book Title: Agam 35 Chhed  02 Bruhatkalpa Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai

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Page 14
________________ फ्र (३६) बृहदकप्पो छेयसुत्तं (३) उ. ४ [६] इत्थ केइ सेहतराए अणुवठ्ठावियए कप्पड़ से तस्स दाउं वा अणुप्पदाउं वा, नत्थि य इत्थ केइ सेहतराए अणुवठ्ठावियए तं नो अप्पणा भञ्जेज्जा नो अन्नेसिं दाव (अणुप्पदेज्जा) एगन्ते बहुफासुए पएसे पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिठ्ठवेयव्वे सिया '४६३' । १३। जे कडे कप्पठ्ठियाणं कप्पर से अकप्पठ्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, अकप्पठियाणं नो से कप्पर कप्पठियाणं कप्पड़ से अकप्पटिठयाणं, कप्पे ठिया कप्पठिया अकप्पे ठिया अकप्पटिठया '४८६ | १४ | भिक्खू य गणाओ अवक्कम इच्छेज्ना अन्नं अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए नो से कप्पइ अणापुच्छित्ताणं आयरियं वा उवज्झायं वा पवत्तिं वा थेरं वा गणिं वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा अन्न गणं उपसंपज्जित्ताणं विहरितए, कप्पर से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए '५७४ | १५ | गणावच्छेइए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अत्रं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए नो कप्पर गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पइ से गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पड़ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरेज्जा एवं से कप्पइ अन्नं गण उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से नो वियरन्ति एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । १६ । आयरियउवज्झाए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पर आयरियउवज्झायस्स आयरियउवज्झायत्तं अनिक्खिवत्ता अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्ना अन्न गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पर से आयरियउवज्झायस्स आयरियउवज्झायत्तं निक्खिवित्ता अन्नं गणं उवसंचज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पर अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पर से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरेज्जा एवं से कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरेज्जा एवं से कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ५७७ | १७| भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं संभोगपडिया उवसंज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा पवत्तिं वा थेरं वा गणिं वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पर से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरेज्जा एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, जत्थुत्तरियं धम्मविणयं लभेज्जा एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, जत्थुत्तरियं धम्मविणयं नो लभेज्जा एवं सेनो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, '५९४' ।१८। गणावच्छेइए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए नो से कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता० विहरित्तए कप्पड़ से गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ताणं अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पर अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पर से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरंति एवं से कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से नो वियरंति एवं से नो संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, जत्थुत्तरियं धम्मविणयं लभेज्जा एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, जत्थुत्तरियं धम्मविणयं भेना एवं से नो कप्पइ अन्नं गरं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । १९। आयरियउवज्झाए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए नो से कप्पइ आयरियउवज्झायस्स आयरियउवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता० विहरित्तए, कप्पड़ से आयरियउवज्झायस्स आयरियउवज्झायत्तं निक्खिवित्ताणं अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पर अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पर से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरंति एवं से श्री आगमगुणमंजूषा १४४६

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