Book Title: Adhyatmik Gyan Vikas Kosh
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Rushabhratnavijay

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Page 10
________________ अनित्य आज कल कायम टिकनेवाला नहीं है सम्बन्ध सम्पत्ति शाश्चत नहीं है तो हम स्वास्थ्य शरीर | राग देष क्यों करें ? राजा भिखारी आरीसा भवन में भरत महाराजा के अंगूली से अँगूठी गिरी ००.०० शरीर की शोभा बाहा पदार्थों में है। जो शोभा एक दिन अवश्य नष्ट होनेवाली है। अनित्य भावना भाते केवलज्ञान हुआ। स्वास्थ्य बिमारी जवानी बुढ़ापा सुख से फूलना, दुःख से मुझोना मत ००० पुष्पित पुष्य (फूल) शाम को मुझति देश्ये सुख दुःख सुख भी क्षणिक तो दुःख भी क्षणिक है। हमें दुनिया में हमेशा के लिए बचा नहीं सकते अशरण 12 भावना (अनुप्रेक्षा) दूःखसे संसार में कोई सच्चा शरण देनेवाला नहीं है। यूं सोच अनाथिमुनि ने दीक्षा ली साथ में श्रेणिकराजा को भी बोध दिया। सांसारिक तमाम वस्तु जीवों को शरण देने में समर्थ नहीं डॉक्टर-दवाई-सैनिक बचाते है है,इबाहुआदूसरे को कैसे उबार सकता है। टेम्पररी सुख प्रदान करते है स्वयं नष्ट होता हो वह परायें को आश्चत कैसे कर। कितु परमानेन्ट सुख तो सकता है? देव-गुरू-धर्म की शरण से प्राप्त होता है। सच्चा शरण एकमात्र देव-गुरू तथा धर्म का है। रोग से दुश्मनों से संसार SAT संसार में रही हुई असारता देव-मनुष्ट-तिर्यंचनरकगतिकूप संसार में जीव कर्मवश परिभ्रमण करता है। विष से ग्रस्त व्यक्ति को कडुआ नीम भी मधुर लगता है। वैसे मोहविक से ग्रस्त जीवों को दुश्वमय संसार भी सुहाता है अत एव जीव दुःखों से ग्रस्त बनकर संसार । में भटकते है। संसार में लिप्त जीवों को दुःस्वी देखकर तथा धर्म से युक्त जीवों की सद्गति यावत् मुक्ति जानकर एक धर्म ही कर्तव्य है। संसार में सारभूत श्री जिनधर्म ही है।

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