Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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विभिन्न विषयों का समन्वयात्मक ग्रन्थ कहा जा सकता है। 'काव्यमीमांसा' के रूप में आचार्य राजशेखर ने साहित्यविद्या को महान् तथा प्रामाणिक शास्त्रों के समकक्ष लाने का प्रशंसनीय प्रयास किया। 1 काव्यविद्या की मीमांसा प्रस्तुत करते हुए उसकी प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए उन्होंने उसका उपदेष्टा शिव को बताया है तथा गुरूशिष्य परम्परा का भी उल्लेख किया है। 2 वेद से सम्बन्ध सिद्ध करने के लिए उन्होंने अलङ्कारशास्त्र को सातवाँ वेदाङ्ग स्वीकार किया है।3 'काव्यमीमांसा' संस्कृत साहित्य की अनुपम उपलब्धि है। इस ग्रन्थ के अट्ठारह अधिकरणों में से केवल 'कविरहस्य' नामक एक ही अधिकरण प्राप्त है। किन्तु केवल एक ही भाग उपलब्ध होने पर भी अपने अपूर्व, अतुलनीय स्वरूप के कारण संस्कृत साहित्य के भण्डार की श्रीवृद्धि करने में पूर्ण सक्षम है। अपने सम्पूर्ण रूप में प्राप्त होने पर यह ग्रन्थ साहित्यसागर के अमूल्य रत्न के रूप में अवश्य प्रतिष्ठा प्राप्त करता। आचार्य राजशेखर के इस कविशिक्षाविषयक ग्रन्थ का अनुकरण करते हुए ही उनके परवर्ती आचार्यों क्षेमेन्द्र, अरिसिंह, अमरचन्द्र, देवेश्वर और हेमचन्द्र ने भी कविशिक्षा से सम्बद्ध ग्रन्थों की रचना की, किन्तु इस विषय पर मौलिक योगदान केवल आचार्य राजशेखर का ही रहा।
1. 'पञ्चमी साहित्यविद्या' इति यायावरीयः । सा हि चतसृणामपि विद्यानां निष्यन्दः ।
2 अथातः काव्यं मीमांसिष्यामहे यथोपदिदेश श्रीकण्ठः भगवान्स्वयंभूरिच्छाजन्मभ्यः स्वान्तेवासिभ्यः ।
'उपकारकत्वादलङ्कारः सप्तममङ्गम्' इति यायावरीयः ।
3.
काव्यमीमांसा (द्वितीय अध्याय, पृष्ठ 11 )
परमेष्ठिवैकुण्ठादिम्यश्चतुः षष्टये शिष्येभ्यः । सोऽपि
काव्यमीमांसा - ( प्रथम अध्याय, पृष्ठ 3 ) काव्यमीमांसा (द्वितीय अध्याय, पृष्ठ 7 )
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