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तीसरा अध्ययन : शीतोष्णीय
होइ प्रवृत्त प्रमाद में, बाल जीव दिन-रात ।
नाना पापाचरण कर, अधोलोक दुख पात । । २ । ।
• प्रपंच निषेध
मूलसूत्रम् -
सहिओ दुक्खमत्ताए पुट्ठो णो झंझाए, पासिमं दविए लोपालोय पवंचाओ
मुच्चइ |
पद्यमय भावानुवाद
ज्ञानवान साधक कभी, दुख से नहिं घबराय । व्याकुल नहिं प्रतिकूल से, समता ले अपनाय । । १ । । आतमदर्शी मुक्त है, लोकालोक प्रपंच । मिलना उसको लक्ष्य तब, शंका करे न रंच ।। २ ।।
मूलसूत्रम् -
चौथा उद्देशक
एक में अनेक
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गंजा से सव्वं जाणइ, जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ।
पद्यमय भावानुवाद
जो कि एक को जानता, वह जाने संसार । जो नर जाने सर्व को, लिया एक सविचार । । १ । । जो जानेगा एक को, जाने वही अनेक । 'सुशील' मुनि जाने सकल, वही जानता एक । । २ । ।