Book Title: Acharang Sutram
Author(s): Vijaysushilsuri, Jinottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
नवाँ अध्ययन : उपधान श्रुत
*१४५*
-
.
-
.
-.
-.
-.
-.
-
.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
.
उसी तरह उपसर्ग दल, जीते थे प्रभु वीर। परीषहों से नहिं डिगे, धीर-वीर-गंभीर ।।२।। कभी न मिलता वास तो, नगर ग्राम दें छोड़।
जा रहते वन खण्ड में, पुर से नाता तोड़।।३।। मूलसूत्रम्
उवसंकमंतमडिण्णं गामंतियं पि अपत्तं।
पडिणिक्खमित्तु लूसिंसु एत्तातो परं पलेहि त्ति।। पद्यमय भावानुवाद
क्या खायें अरु कहँ रहें, किया न यह संकल्प। वास-अशन हित जाय जब, देख वक्त का कल्प।।१।। जब पहुँचे पुर के निकट, लोग करें उत्पात ।
जाओ भागो क्यों खड़े, कहें और लतियात ।।२।। मूलसूत्रम्
हयपुव्वो तत्थ डंडेणं अदुवा मुट्ठिणा अदु कुंताइ फलेणं।
अदु लेलुणा कवालेणं हंता हंता बहवे कंदिसु।। पद्यमय भावानुवाद
डण्डे-मुक्के-भल्ल से, मारें दुष्ट कुजात ।
कि शस्त्र अरु ढेला कभी, किंचित् नहीं लजात।। मूलसूत्रम्
मंसाणि छिनपुव्वाइं उट्ठभंति एगयाइं कायं। परिस्सहाई लुचिसु अदुवा पंसुणा अवकरिंसु।। उच्चालइयं णिहणिंसु अदुवा आसणाओ खलइंसु। वोसट्टकाए पणयासी दुक्खसहे भगवं अपडिन्ने।।

Page Navigation
1 ... 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194