Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 27
________________ अगर आप सुवर्णमुद्रिका का अमूल्यमणिके साथ संबन्ध करना चाहते हैं तो इस विचारकों सर्वथा स्थिर कर लेवें, और इस विपयमें जिस किसी सजन स्नेहीकी संबंधीकी सम्मति लेंगे आशा है कि वोह सब आपके इस सद्विचारमें बडे आनन्दसें शामिल होंगे, बल्कि आपके इस संकल्पका अनुमोदन करेंगे। __ श्रीदत्तने ज्योतिपीजीकी बातकों आदरसें सुना और उसपर घरमें विचारकर जहांतक होसके निश्चय करनेका निर्धारण किया, श्रीदत्तने ज्योतिपिजीका यह कथन अपने घरकी स्त्रीको और चन्द्रकुमारकों सुनाया, उन्होंने तो इसवातके सुनतेही प्रस्तुतकार्यकी बडी प्रशंसा की। जिन जिन निकटवर्ति संवन्धियोंको पूछना जसरी था, शेठजीने पूछा। एक क्या तमाम लोग एक ही मतसें इस कार्यमें शेठके सहमत हुए । हमारे वाचक महाशय पढ़ चुके हैं कि एक दफा पाटणमें घोडेसवार होकर जब कुमार बाजारमें जा रहा था तर घोडा उसके वश न रहनेसें कूदकर सामने आते एक स्त्रियोंके टोले तर्फ दौडाथा, इससे वह सब औरते इधर उधर भाग गईथी उस मंडलमें उसदिन श्रीदेवीभी शामिलथी, विमल कुमारके सुंदररूपके देखनेसें वह उसपर रागवती होकर तन्मय वनगइथी, रात और दिन विमलकुमारके ध्यानमेंही तल्लीन रहतीथी, इस चिन्तामें उसका शरीर क्षीण होता जाता था, किसीके साथ खुशीसें बोलना, किसी रमणीक वस्तुकों देखना, रुचिसें भोजन करना, सुन्दर पोशाक पहनना उसे

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