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स्वानुभूति रहित श्रद्धा
इसलिये वे सम्यग्दर्शन यानि सात/नौ तत्त्वों की कही जानेवाली स्वात्मानुभूति रहित श्रद्धा अथवा सच्चे देव-गुरु-शास्त्र की कही जाती स्वात्मानुभूति रहित श्रद्धा को ही सम्यग्दर्शन मानते हैं। उन्हें स्वात्मानुभूति रहित की श्रद्धा और स्वात्मानुभूति सहित की श्रद्धा, इन दोनों का अन्तर ज्ञात नहीं होता। शायद वे ज्ञात नहीं करना चाहते। इसलिये वे सम्यग्दर्शन जो कि धर्म का मूल है, उस के विषय में ही अनजान रहकर पूरी ज़िन्दगी धर्म क्रिया उत्तम रीति से करने पर भी संसार के अन्त करनेवाले धर्म को प्राप्त नहीं करते। यह करुणा उत्पन्न करनेवाली बात है।