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________________ पर्याय परम पारिणामिक भाव की ही बनी हुई है 73 १५ पर्याय परम पारिणामिक भाव की ही बनी हुई है पंचाध्यायी उत्तरार्ध के श्लोक श्लोक ११ : अन्वयार्थ :- ‘स्वयं अनादि सिद्ध सत् में (आत्मा में) भी पारिणामिक शक्ति से (पारिणामिक भाव से) स्वाभाविकी क्रिया तथा वैभाविकी क्रिया होती है।' ___ भावार्थ :- ‘आगम में जीव के पाँच भाव कहे हैं, उनमें एक पारिणामिक भाव है, उसे पारिणामिक शक्ति भी कहा जाता है, उसकी दो प्रकार की पर्याय होती हैं; एक स्वाभाविक तथा दुसरी वैभाविक (यहाँ जो एक द्रव्य की दो पर्यायें कही हैं, वह अपेक्षा से दो हैं वास्तव में दो नहीं समझना चाहिये क्योंकि एक द्रव्य की एक ही पर्याय होती है परन्तु उसे सामान्य और विशेष ऐसी दो अपेक्षा से दो पर्याय कहा है, उनमें सामान्य को स्वाभाविक पर्याय कहते हैं और विशेष को वैभाविक पर्याय कहते हैं। वह विशेष पर्याय सामान्य भाव की ही बनी हुई होने से अर्थात् वह परमपारिणामिक भाव की ही बनी हुई होने से, वास्तव में पर्याय एक ही होती है) यह दोनों जीव की अपनी अपेक्षा से पारिणामिक भाव है। यह निश्चय कथन है (देखें जयधवला, भाग-१, पृष्ठ-३१९ तथा धवला टीका, भाग-५, पृष्ठ-१९७-२४२-२४३) और कर्म के उदय की अपेक्षा बताने के लिये जीव के विकारी भाव को (अर्थात् विभाव भाव रूप विशेष भाव को) औदयिक भाव कहा जाता है। यह व्यवहार कथन है।' यहाँ समझना यह है कि निश्चय नय से (अभेद नय से) जीव को एकमात्र पारिणामिक भाव ही होता है परन्तु व्यवहार नय से (भेद नय से) उसी भाव को सामान्य अपेक्षा से परम पारिणामिक भाव और विशेष अपेक्षा से औदयिक आदि चार भाव रूप कहा जाता है। विशेष रूप औदयिक आदि चार भाव रूप पर्याय सामान्य भाव की ही बनी हुई होती है। वह परम पारिणामिक भाव की ही बनी हुई होती है अर्थात् औदयिक आदि सर्व विशेष भाव रूप मैं = परम पारिणामिक भाव ही परिणमता हूँ और इसलिए मुझे = परम पारिणामिक भाव को ही मुझ में = परम पारिणामिक भाव में जागृति रखनी है और स्वयं को क्रोध, मान, माया, लोभ, भय, परिग्रह, वासना इत्यादि से बचाना है। इसे ही संवर भाव कहा जाता है, इसी से निर्जरा होती है। That means, I am pure awareness = परम पारिणामिक भाव = ज्ञायक भाव। I am geting manifested as all the feelings like pain, happiness, etc. and as knowledge,
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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