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सम्यग्दर्शन की विधि
श्लोक १११८ : अन्वयार्थ :- ‘शंकाकार का उपरोक्त कथन ठीक है, क्योंकि जो इन्द्रियों के सम्बन्ध से पदार्थ का ज्ञान होता है, वह ज्ञान असंयमजनक नहीं होता परन्तु उन विषयों में जो रागादि बुद्धि उत्पन्न होती है, उसे न होने देना, वही इन्द्रिय संयम है।'
अर्थात् किसी को भी इन्द्रिय ज्ञान से डरने की आवश्यकता नहीं, इन्द्रिय ज्ञान को नकारने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वह आत्मा का ही एक उपयोग विशेष है और इसीलिये वह ज्ञान असंयमजनक नहीं होता। परन्तु उस ज्ञान के विषयों में जो रागादि बुद्धि उत्पन्न होती है, उसे न होने देना, वही संयम है और वही कर्तव्य है।