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________________ सम्यग्दर्शन की विधि भिन्न हो जायेगी फिर तो द्रव्य का एक भाग कूटस्थ और दूसरा भाग क्षणिक हो जायेगा। अर्थात् द्रव्य कूटस्थ और क्षणिक हो जाएगा ऐसा होने से तो वस्तु की सिद्धि ही नहीं होगी क्योंकि ऊपर बतलाये अनुसार कोई भी द्रव्य कार्य बिना कूटस्थ हुए नहीं होता और कोई द्रव्य क्षणिक हो तो उस द्रव्य का ही अभाव हो जायेगा, इससे तो ऐसे दो दोष वस्तु व्यवस्था न समझने से आ जायेंगे और वस्तु की सिद्धि ही नहीं होगी। इसलिये प्रथम बतलाये अनुसार वस्तु का जो वर्तमान है, अर्थात् उसकी जो अवस्था है, उसे ही पर्याय समझना अत्यन्त आवश्यक है। जब ऐसा कहा जाये कि पर्याय तो द्रव्य में से ही आती है और द्रव्य में ही जाती है तो ऐसे कथन को ऊपर बतलाये अनुसार अपेक्षा से मात्र व्यवहार' अर्थात् उपचार - कथन मात्र समझना, वास्तविक नहीं। अब आगे हम उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य की यथार्थ व्यवस्था समझाने का प्रयास करते हैं।
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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