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________________ द्रव्य - पर्याय व्यवस्था जाता है। यहाँ समझने का यह है कि जो गुणों का समूह रूप द्रव्य है, उसका कोई न कोई आकार अवश्य होगा और उसका कोई न कोई रूप और कार्य भी अवश्य होगा ही अर्थात् उसमें जो आकार है, उसे उस द्रव्य की द्रव्य पर्याय अथवा व्यंजन पर्याय कहा जाता है और जो उसका वर्तमान कार्य है (परिणाम है=अवस्था है), उसे उस द्रव्य की गुण पर्याय अथवा अर्थ पर्याय कहा जाता है। 21 जैसा हमने पहले देखा, वैसा भेद रूप व्यवहार, अभूतार्थ है; वह मात्र तत्त्व समझने अथवा समझाने के लिये प्रयोग में लिया जाता है, अन्यथा वह कार्यकारी नहीं है। वस्तु का स्वरूप तो अभेद ही है और वही भूतार्थ है । इसीलिये सर्व कथन अपेक्षा से ग्रहण करने योग्य है, अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता है अर्थात् उसे जो कोई एकान्त से ग्रहण करे अथवा समझावे तो वह मिथ्या दृष्टि है और वह नष्ट हो चुका है अर्थात् यह मनुष्य भव हार चुका है। (पीछे बतलायी गाथा ६३६ देखना) प्रत्येक वस्तु का कार्य वस्तु से अभेद होता है। उसे ही उसका उपादान रूप परिणमन कहा जाता है। उस कार्य को अथवा अवस्था को, वर्तमान समय अपेक्षा से वर्तमान पर्याय कहा जाता है। भेद नय से ऐसा कहा जा सकता है कि - पर्याय द्रव्य में से आती है, और द्रव्य में ही जाती है क्योंकि कोई भी द्रव्य (वस्तु) का कार्य उससे अभेद ही होता है, तथापि भेद नय से ऐसा कथन किया जा सकता है कि वे दोनों भिन्न-भिन्न हैं । द्रव्य और पर्याय को कथंचित् भिन्न कहा जाता है वह इसी अपेक्षा से । कोई भी द्रव्य है वह नित्य है परन्तु कूटस्थ नित्य नहीं क्योंकि यदि उस वस्तु का कोई भी कार्य ही नहीं मानने में आये तो उस वस्तु का ही अभाव हो जायेगा, इसलिये प्रत्येक नित्य वस्तु का, जो वर्तमान कार्य है उसे ही उसकी पर्याय कहने में आती है और ऐसी भूत-भविष्य और वर्तमान की पर्यायों का समूह ही द्रव्य (वस्तु) है। अर्थात् अनुस्यूति (continuity) से रचित पर्यायों का समूह, वही द्रव्य है। वस्तु का स्वभाव है कि वह कायम रहकर परिवर्तित होती है। इसलिये उस वस्तु में एक स्थिरता भाव है और एक परिवर्तन का भाव है, उसमें से जो स्थिरता भाव है उसे नित्य रूप अर्थात् द्रव्य कहा जाता है, त्रिकाली ध्रुव कहा जाता है, और जो परिवर्तन का भाव है, उसे पर्याय कहा जाता है। फिर भी वस्तु में एक स्थिरता भाग और एक परिवर्तन भाग ऐसे दो भाग अर्थात् विभाग नहीं हैं। यदि ऐसे कोई विभाग मानने में आयेंगे तो वस्तु एक-अखण्ड-अभेद न रहकर दो और
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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