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________________ 20 सम्यग्दर्शन की विधि द्रव्य-पर्याय व्यवस्था द्रव्य और गुण की व्यवस्था देखी, अब हम पर्याय के विषय में विचार करेंगे। प्रश्न :- गुणों के समुदाय रूप अभेद द्रव्य (वस्तु) है तो उसमें पर्याय कहाँ रहती है? उत्तर :- पर्याय द्रव्य के सारे प्रदेश में (पूर्ण क्षेत्र में) रहती है क्योंकि गुणों के समूह रूप अभेद द्रव्य का जो वर्तमान है अर्थात् उसकी जो वर्तमान अवस्था है (परिणमन है) उसे ही उस द्रव्य की पर्याय कहने में आती है और उस अभेद पर्याय में ही विशेषताओं की अपेक्षा से अर्थात् गुणों की अपेक्षा से उसमें (अभेद पर्याय में) ही भेद करके उसे गुणों की पर्याय कहा जाता है। इस कारण कहा जा सकता है कि जितना क्षेत्र द्रव्य का है, वह और उतना ही क्षेत्र गुणों का है और वह तथा उतना ही क्षेत्र पर्याय का भी है; इसलिये ही द्रव्य-पर्याय को व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध कहा जाता है। यही बात प्रवचनसार गाथा ११४ में भी कही है कि 'द्रव्यार्थिक (नय) द्वारा सम्पूर्ण (अर्थात् पूर्ण द्रव्य) द्रव्य है; और फिर पर्यायार्थिक (नय) द्वारा वह (द्रव्य) अन्य-अन्य है क्योंकि उस काल में तन्मय होने के कारण (द्रव्य पर्यायों से) अनन्य है।' प्रश्न :- तो द्रव्य और पर्याय के प्रदेश भिन्न हैं ऐसा किस प्रकार कहा जा सकता है? उत्तर :- भेदविवक्षा में जब एक अभेद-अखण्ड द्रव्य में भेद उत्पन्न करके समझाया जाता है तब द्रव्य और पर्याय, ऐसे वस्तु के 'दो भावों' को अपने-अपने भाव की अपेक्षा से ऐसा कहा जा सकता है कि दोनों के प्रदेश भिन्न हैं, परन्तु वास्तव में वहाँ कोई भिन्नता ही नहीं है, वे दोनों अभेद ही हैं, तन्मय ही हैं अर्थात् एक ही आकाश प्रदेशों को अवगाह किए हुए हैं। जैसे स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा २७७ में बतलाया है कि 'वस्तु जिस काल में जिस स्वभाव से परिणमन रूप होती है, उस काल में उस परिणाम से तन्मय होती है...' और पंचास्तिकाय संग्रह गाथा ९ में भी बतलाया है कि 'उन-उन सदभाव पर्यायों को जो द्रवता है-प्राप्त होता है, उसे सर्वज्ञों द्वारा द्रव्य कहा जाता है। क्योंकि वह सत्ता से (अर्थात् द्रव्य से) अनन्यभूत है।' इस अभेद पर्याय को, आकार की अपेक्षा से व्यंजन पर्याय अथवा द्रव्य पर्याय कहा जाता है और उसी अभेद पर्याय को विशेषताओं की अपेक्षा से गुण पर्याय अथवा अर्थ पर्याय भी कहा
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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