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________________ सम्यग्दर्शन बिना द्रव्य चारित्र 135 २६ सम्यग्दर्शन बिना द्रव्य चारित्र पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध के श्लोक श्लोक ७६९ : अन्वयार्थ :- ‘और जो द्रव्य चारित्र और श्रुत ज्ञान है, वह यदि सम्यग्दर्शन के बिना होते हैं तो वह न ज्ञान है न चारित्र है। यदि है तो केवल कर्म बन्ध करनेवाला है।' अर्थात् यहाँ प्रथम बतलाये अनुसार कोई अपने को द्रव्य चारित्र से ही अथवा क्षयोपशम ज्ञान से ही हम मोक्षमार्ग में हैं ऐसा समझते हों और लोगों को ऐसा समझाते हों तो उनके लिये यह श्लोक लाल बत्ती समान है। किसी को भी अभ्यास रूप द्रव्य चारित्र लेने की कुछ भी मनाही नहीं है परन्तु उससे यदि कोई अपने को कृतकृत्य समझते हों अथवा समझाते हों और स्वयं को छठवें अथवा सातवें गुणस्थानक स्थित मानते हों अथवा मनवाते हों और श्रावक अपने को पाँचवें गुणस्थानक में स्थित समझते हों अथवा समझाते हों तो उनके लिये यह श्लोक लाल बत्ती समान यानि सावधान करने के लिये है । इसलिये यदि कोई ऐसा न समझकर, अपने को मात्र आत्म लक्ष्य से यानि आत्म प्राप्ति के लिये अभ्यास रूप चारित्र मानते, समझते हों और उसके लिये ही श्रुत ज्ञान आराधते हों तो वे कर्म बन्ध के कारण से आंशिक रूप से बच सकते हैं और पूर्व में बतलाये अनुसार अपना कल्याण भी कर सकते हैं।
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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