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सम्यग्दर्शन के लिये योग्यता
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आगे बढ़ना है; इस प्रकार से लोक भावना का सहारा लेकर अपने को अपनी संसार-मुक्ति तय करनी है। यही इस भावना का फल है। बोधिदर्लभ भावना :- बोधि अर्थात् सम्यग्दर्शन। अनादि से हमारी भटकन का यदि कोई कारण है तो वह है सम्यग्दर्शन का अभाव; इसलिये समझ में आता है कि सम्यग्दर्शन कितना दर्लभ है, किसी आचार्य भगवन्त ने तो कहा है कि वर्तमान काल में सम्यग्दृष्टि अंगुली के पोर पर गिने जा सकें, इतने ही होते हैं।
बोधि यानि सम्यग्दर्शन कैसे पाना ? किस विषय के चिन्तन से और अनुभव से सम्यग्दर्शन पाया जा सकता है और उसके लिये क्या योग्यता होनी चाहिये इत्यादि के लिये ही यह पुस्तक लिखी गई है; इस भावना का महत्त्व अपूर्व है ऐसा समझकर जल्द ही सम्यग्दर्शन प्राप्त करें, यही इस भावना का फल है।
हमने अनन्तों बार व्रत-नियम-यम-प्रत्याख्यान ग्रहण किए हैं ऐसा भगवान ने बताया है फिर भी अभी तक हम संसार से मुक्ति नहीं पा सके हैं, तब प्रश्न होता है कि ऐसा क्यों हआ? उसका उत्तर एक ही है कि हमने जो भी व्रत-नियम-यम-प्रत्याख्यान ग्रहण किये वे संसार से मुक्ति पाने के लिये नहीं किये या फिर कहने के लिये तो संसार से मुक्ति पाने के लिये ही व्रतनियम-यम-प्रत्याख्यान ग्रहण किये परन्तु अन्तर में संसार की रुचि समाप्त नहीं हुई यानि भवबंधन रोग रूप नहीं लगा जिससे सच्चा वैराग्य उत्पन्न नहीं हुआ और सम्यग्दर्शन भी नहीं हुआ। बोधि यानि सम्यग्दर्शन के लिये सच्चा वैराग्य, कषायों की मन्दता और इच्छाओं का नाश आवश्यक है, जिससे मन में बसा हुआ संसार जल जाता है, तब हमारी बहिर्मुखता समाप्त होकर अन्तर्मुखता प्रगट होती है, जिससे हमारी सम्यग्दर्शन के लिये योग्यता बनती है। ऐसी योग्यता बनाकर हम जल्द से जल्द मोक्ष प्राप्ति करें, यही इस भावना का फल है। धर्म स्वरूप भावना :- वर्तमान काल में धर्म स्वरूप में बहत विकृतियाँ प्रवेश कर चुकी हैं, अब सब को सत्य धर्म की शोध और उसका ही चिन्तवन करना चाहिये। सारा पुरुषार्थ उसे प्राप्त करने में लगाना है।
वर्तमान काल में जिन शासन में कई सम्प्रदाय हो गये हैं और उनमें भी बँटवारा हो कर के और नये-नये मत-पन्थ-सम्प्रदाय बन रहे हैं। प्राय: ये सभी सम्प्रदाय अपने को सच्चा/अच्छा/ सर्वोच्च मानते हैं और अन्यों में कमियाँ दिखाते हैं या तो उनको कपोल कल्पित बताते हैं। इस तरह से अन्यों से जाने-अनजाने में द्वेष भी कराते हैं, जिससे अपना संसार बढ़ता है, दुःख बढ़ता है।