SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 108 सम्यग्दर्शन की विधि अपना शस्त्र बनाकर, अपने माने हए धर्म की प्रभावना करना चाहते हैं। मगर ऐसे लोगों को यह भी पता नहीं होता कि धर्म की प्रभावना करने हेतु पहले स्वयं धर्म प्राप्ति करना आवश्यक होता है। अन्यथा धर्म की प्रभावना सम्भव ही नहीं है। अर्थ से या अन्य प्रलोभनों से हम जिसकी प्रभावना करते हैं, वह केवल अर्थ की ही प्रभावना होती है, जिस से अर्थ के कामी लोग, अर्थ या प्रलोभनों के लिये आपके सम्प्रदाय में शामिल ज़रूर हो जाते हैं मगर उस सम्प्रदाय में प्राण नहीं होता, मात्र संख्या होती है। उससे किसी का भी कल्याण होना सम्भव नहीं होता। __ उपरोक्त “दृष्टि (सम्यग्दर्शन) का विषय यानी पर्याय रहित द्रव्य' यह बात सही है, परन्तु एक विशेष अपेक्षा से। पर्याय रहित द्रव्य यानि पर्याय को गौण करके अर्थात् विभाव को गौण करके जो शुद्धात्मा प्राप्त होता है, वह दृष्टि (सम्यग्दर्शन) का विषय है। यह बात नहीं समझने के कारण, मात्र शब्दार्थ पकड़कर ऐसी प्ररूपणा की जाती है जो अनेक जीवों के लिये घातक है। अनेक जीवों को अनन्त काल तक संसार में रुलाने के लिये सक्षम है। उदाहरण II:- कई लोग ऐसा भी कहते हैं कि “आत्मा में राग है ही नहीं, ऐसा समयसार इत्यादि ग्रन्थों में अनेक बार बताया है और उसका अक्षरश: अर्थ करते हुए ऐसे लोग आत्मा राग करता है, इस बात को ही नहीं मानते और स्वच्छन्द रूप परिणमते हैं। इसी कारण से ऐसे लोग प्रायः भ्रम में ही रहते हैं। ऐसे लोग प्राय: एकान्तवादी होते हैं और अपने धर्म-कर्तव्य और योग्यता प्राप्ति को भी क्रमबद्धपर्याय के नाम से नियति के ऊपर छोड़कर अपना पूरा पुरुषार्थ अर्थ और काम के पीछे ही लगाते रहते हैं। आत्मा में राग है ही नहीं ऐसा समयसार इत्यादि ग्रन्थों में अनेक बार बताया है। यह बात सच होने के बावजूद भी उस कथन की अपेक्षा न समझने के कारण उसका अक्षरश: अर्थ करते हुए ऐसे लोग एकान्तवाद के शिकार हो जाते हैं। समयसार जैसे ग्रन्थों में शुद्धात्मा की ही बात की गई है जो दृष्टि (सम्यग्दर्शन) का विषय है अर्थात् समयसार जैसे ग्रन्थों में आत्मा में से विभाव को गौण करने के बाद जो परम-पारिणामिक भाव रूप शुद्धात्मा शेष रहता है, उसी की बात की गई होने से आत्मा में राग नहीं है ऐसा बताया है। अर्थात् आत्मा राग रूप परिणमता होने के बावजूद भी दृष्टि (सम्यग्दर्शन) के विषय में राग गौण होने के कारण समयसार जैसे ग्रन्थों में, सम्यग्दर्शन कराने के लिये शुद्धात्मा की ही बात की गयी है जो कि दृष्टि (सम्यग्दर्शन) का विषय है, यह समझना अति आवश्यक है। इसीलिए समयसार श्लोक ६९ में कहा है कि :- “जो नय पक्षपात को छोड़कर (अर्थात् हमने पूर्व में अनेक बार बतलाये अनुसार जिसे किसी भी एक नय का आग्रह हो अथवा तो कोई
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy