SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यग्दर्शन की विधि शुद्धात्मा के अनुभव रूप सम्यग्दर्शन से जुड़ा हुआ है। किसी सम्प्रदाय या व्यक्ति आधारित पन्थ से नहीं। परम सत् तत्त्व ही सत्य धर्म है, अर्थात् वस्तु का स्वभाव ही धर्म है; अर्थात् धर्म किसी क्रिया-काण्ड, जप-तप, पूजा पद्धति अथवा किसी मन्दिर, गिरजाघर या धर्मस्थान का आश्रित नहीं है। फिर भी अनेक साम्प्रदायिक लोग भरपूर धन ख़र्च करके धार्मिक उत्सव मनाते हैं और उसे धर्म की प्रभावना बताते हैं, परन्तु वास्तव में वह केवल सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार ही होता है। तद् व्यतिरिक्त वे धन का ऐसा लापरवाह प्रदर्शन करके धर्म के अनेक टीकाकारों को जन्म देते हैं, जिससे अनेक भोले लोग धर्म से दूर होते हैं; और अन्य सम्प्रदाय के लोग भी, धन का ऐसा लापरवाह प्रदर्शन देखकर विरोधी बनते हैं। ऐसे अत्यधिक धन खर्च करनेवाले अपने आपको महान मानने लगते हैं और मन्दिर, स्थानक या धर्मस्थान में अपनी मनमानी चलाने लगते हैं; इस तरह से वे अपने अहम् को ही पाल-पोसकर बड़ा करते रहते हैं, जिससे उनकी समाज में अपकीर्ति होती है। यही अहम् अध्यात्म साधना मार्ग का बड़ा घातक शत्रु है। 106 दूसरा, मत-पन्थ-सम्प्रदाय - व्यक्ति विशेष का आग्रह, हठाग्रह, कदाग्रह, पूर्वाग्रह अथवा पक्ष आत्म प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है। दुःख यह है कि प्रत्येक सम्प्रदाय केवल ख़ुद को ही सम्पूर्ण और परम सत्य मानता है और अन्यों को झूठा और अधूरा मानता है; ऐसी भावना या कथन से द्वेष का जन्म होता है। ऐसी भावना या कथन से सत्य धर्म की भी पराजय होती है। सत्य धर्म की प्राप्ति प्राय: ज्ञानी के पास से ही सम्भव है। सत्य धर्म प्राप्त ज्ञानी को किसी सम्प्रदाय का आग्रह नहीं होता, परन्तु परम सत्य का ही आग्रह होता है; इसलिये ज्ञानी के पास से केवल सत्य धर्म की प्राप्ति की कामना करना, परम उपादेय है। न कि सम्प्रदाय की। क्योंकि ज्ञानी की अशातना का फल अनन्त संसार है। अर्थात् ज्ञानी को किसी भी साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से न देखना और न ही साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से मूल्यांकन करना क्योंकि ज्ञानी सामनेवाले व्यक्ति की योग्यता के अनुरूप ही धर्म प्राप्ति का उपदेश देते हैं, जैसे कि कोई भी वैद्य या डाक्टर दर्द के अनुरूप ही दवाई देते हैं, सभी मरीज़ों को एक ही दवाई नहीं दी जाती। अर्थात् सभी के लिये एक ही धर्म क्रिया, प्रवचन, व्याख्यान, स्वाध्याय, नित्य- -क्रम आदि नहीं होते परन्तु उनकी योग्यता और स्तर के अनुसार जो उचित हो, वही बताया जाता है। प्रश्न :- “सत्य धर्म की प्राप्ति प्रायः ज्ञानी के पास से ही सम्भव है " ऐसा क्यों कह रहे हो ? क्या भगवान की परम्परा से प्राप्त आगमों और शास्त्रों से सत्य धर्म का निर्णय नहीं हो सकता ? उत्तर :- भगवान की परम्परा से प्राप्त आगमों और शास्त्रों से भी सत्य धर्म का निर्णय हो सकता है परन्तु इस काल में प्रधान रूप से तीन समस्यायें हैं।
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy