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________________ सम्यग्दर्शन के लिये योग्यता 105 इस प्रकार हम अनादि से कई प्रकार के निदान करके ख़ुद को ठगते आये हैं और अब यह कब तक करते रहना है ? यह तय करके शीघ्र ही उपरोक्त रीति से सम्यग्दर्शन प्राप्त करने की योग्यता बनानी चाहिये। सम्यग्दर्शन प्राप्ति हेतु सत्य धर्म मिलना अति आवश्यक है, अब आगे हम सत्य धर्म का स्वरूप समझाते हैं। जीव सोचता है कि कौन से सम्प्रदाय में जुड़ने से हमको सम्यग्दर्शन मिल सकता है ? अथवा कौन सा सम्प्रदाय सच्चा है? इत्यादि प्रश्नों का उत्तर वह खोजता रहता है। परन्तु जब उसे सभी सम्प्रदायवाले कहते हैं कि – एकमात्र हमारा सम्प्रदाय ही सच्चा है और एकमात्र हमारे सम्प्रदाय में ही सम्यग्दर्शन प्राप्त हो सकता है, अन्य सब पाखण्ड हैं अर्थात् अन्य सभी सम्प्रदाय झूठे हैं; तब वह असमंजस में पड़ जाता है और सोचता है कि इसमें से कौन सत्य कह रहा है? प्राय: सभी सम्प्रदायों में अपनी-अपनी रूढ़ि अनुसार धर्म-क्रियाएँ और अपना-अपना क्रम चलता रहता है; उसमें बदलाव की या फिर कुछ नया करने की गुंजाइश बहुत ही कम रहती है। लोग प्रायः अपने पैतृक सम्प्रदाय को ही सच्चा और अच्छा मानते हैं, उसका ही अनुसरण करते हैं। अथवा अपने आस-पास या सगे-सम्बन्धी में आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों के प्रभुत्व में आकर उनके कहे हुए मत-पन्थ-सम्प्रदाय-पक्ष या व्यक्ति आधारित पन्थ (personality cult) को ही मान्य करके उनका अँधा अनुकरण करते रहते हैं; उसका ही कट्टरता से प्रचार-प्रसार भी करते रहते हैं। ऐसा करके वे जीव अपने लिये अनन्त काल के अंधकारमय भविष्य का निर्माण करते हैं। धर्म सदैव परीक्षा करके ही अंगीकार करना चाहिये। जैसे, कोई रोगी बहुत काल तक दवाई खाकर भी अच्छा नहीं होता, तब वह अवश्य सोचता है कि या तो दवाई बदलनी पड़ेगी या डॉक्टर बदलने पड़ेंगे; लेकिन जब किसी सम्प्रदाय में कई सालों से धर्म क्रियायें, प्रवचन, व्याख्यान, स्वाध्याय, नित्य-क्रम आदि करते रहने के बावजूद भी जब परिणाम नहीं सुधरते या अपने भाव, धर्म के अनुकूल नहीं होते तब भी लोग कुछ नहीं सोचते। बल्की लोग वही सब यन्त्रवत् करते रहते हैं और उनका फ़ायदा हुआ हो या नहीं, लेकिन वे उसी का प्रचार-प्रसार भी करते फिरते हैं। परन्तु अपने भाव या परिणाम को नज़रअन्दाज़ ही करते हैं, इसलिये सत्य/शुद्ध धर्म के बारे में जानना आवश्यक है। सत्य/शुद्ध धर्म कोई सम्प्रदाय या व्यक्ति आधारित पन्थ (personality cult) के साथ बन्धा हुआ नहीं है और न ही वह किसी सम्प्रदाय या व्यक्ति आधारित पन्थ (personality cult) की जागीर है परन्तु सत्य/शुद्ध धर्म ज्ञानी के पास अवश्य है। वह आत्म आश्रित है अर्थात् वह
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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