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सम्यग्दर्शन की विधि
उसे निदान शल्य भी कहा जाता है क्योंकि उस निदान की वजह से हमको जो अपने कर्मों के अनुसार मिलनेवाला ही है, उससे कम मिलता है और उसके भोग के समय बहुत पाप बन्ध होता है क्योंकि हमने उसे माँग के लिया होने से उसमें आसक्ति अधिक ही होती है। वास्तव में माँगने की आवश्यकता ही नहीं है। क्योंकि माँगने से जो भी मीला है उससे भी अच्छा, नहीं माँगने से हमें अपने कर्म अनुसार मिलनेवाला ही है।
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जैसे, हम कहीं घूमने के लिये गये हों या कोई प्राकृतिक जगह पर गये हों और हमको वह जगह या प्राकृतिक दृश्य पसन्द आ गया, तब हमारा वहाँ जन्म लेना तय हो जाता है। क्योंकि जो हमें पसन्द है, प्राय: वहीं हमारा जन्म होता है। उस प्राकृतिक जगह पर हम वनस्पति- पानीपृथ्वी आदि में असंख्यात काल तक का आरक्षण (booking) करा लेते हैं।
जैसे, हमें विजातीय व्यक्ति का कोई अंग पसन्द आ गया, तब हमने उस अंग में अपना आरक्षण (booking) करा लिया। उस अंग में हम सूक्ष्म जीवाणु बनकर लम्बे काल तक वहीं पर जन्म-मरण करते हुए रह सकते हैं।
जैसे, कोई धर्मी जीव को महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेने का भाव हुआ क्योंकि वहाँ भगवान सदैव विराजमान होते हैं और वह जीव सोचता है कि महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मैं धर्म प्राप्त करूँगा। तब वह भी एक प्रकार का निदान ही है। परन्तु जिसे धर्म करना हो, उसे आज ही और इधर ही करना चाहिये क्योंकि यहाँ भी अभी भगवान महावीरस्वामी का शासन प्रवर्तमान है और यहाँ भी हम सम्यग्दर्शन प्राप्त करके एकावतारी बन सकते हैं। जिसने धर्म को कल के ऊपर छोड़ा उसका कल कभी नहीं आता, तब इस अमूल्य जन्म को छोड़कर अगले भव का इन्तज़ार करना कौन सी समझदारी है ?
वैसे ही बहुत लोग धर्म करके, देवों के दिव्य सुख प्राप्ति की कामना करते हैं और उसी उद्देश्यपूर्ति के लिये वे धर्म करते हैं। ऐसे लोग सम्यग्दर्शन के अभाव के कारण, देवगति प्राप्त करके भी आगे प्राय: एकेन्द्रिय में चले जाते हैं, जिसमें उनका अनन्त काल बीत सकता है और भगवान ने एकेन्द्रिय से बाहर निकलना चिन्तामणिरत्न की प्राप्ति से भी अधिक दुर्लभ बताया है, यह नहीं भूलना चाहिये।
भगवान ने बताया है कि हर प्रकार का संयोग आपको अपने कर्मों के अनुसार ही मिलता है तब फिर माँगकर अर्थात् निदान करके, अपना नुक़सान क्यों करना ? यह बात हर मुमुक्षु को सोचना और समझना अति आवश्यक है, जिससे वह निदान शल्य से बच पाये।