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________________ सम्यग्दर्शन के लिये योग्यता 103 २. भगवान ने आश्वासन दिया है कि हमें कभी दूसरे के कर्मों की सज़ा मिलने वाली नहीं है। इसलिये यह बात तय है कि वह हमारा ही लिया हुआ ऋण था, जिसका हमने अभी नुक़सान के रूप में भुगतान किया है। ३. इस कारण से यह सोचना चाहिए कि मैं ऋणमुक्त हो गया। उसका आनन्द और सन्तोष लेना चाहिये। इससे हम नये कर्म बन्ध से बच जायेंगे, पुराने कर्मों का समता भाव पूर्वक भुगतना हो जायेगा और अपनी प्रसन्नता बनी रहेगी। हम नये पाप कर्मों से और दुःखी होने से बच जायेंगे जो हम अनादि से करते आये हैं, जिससे हम दुःखी हैं और कर्मों के दुष्चक्र में फंसे हुए हैं। यह है “धन्यवाद! स्वागतम् ! (Thank you! Welcome!)" का प्रभाव। इस तरह “धन्यवाद! स्वागतम् ! (Thank you! Welcome!)" का उपयोग हम अनेक परिस्थितियों में करके अपना फ़ायदा ले सकते हैं और अपने को कर्मों के दुष्चक्र से मुक्त करा सकते हैं। __ कर्मों के दुष्चक्र में फंसे हुए रहकर, हम अनादि से अपना भविष्य तय करते आ रहे हैं और आज भी कर रहे हैं। अनादि से हम अपना भविष्य दो प्रकार से तय करते आ रहे हैं, एक वर्तमान में अपने को मिले ये संयोग में रति-अरति (पसन्द-नापसन्द) करके अर्थात् वर्तमान परिस्थिति के ऊपर प्रतिक्रिया के रूप में और दूसरा नयी क्रिया के रूप में अर्थात् निदान और पुण्य-पाप करके। इसलिये ही जीव जब तक सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं करता, तब तक उसके कर्मों का दुष्चक्र समाप्त होनेवाला नहीं है। आगे हम निदान के बारे में कुछ समझाने का प्रयास करते हैं। हम जाने-अनजाने में कई तरह से हर दिन निदान करते रहते हैं। इसे अंग्रेज़ी में law of attraction (आकर्षण का नियम) या secret (रहस्य) के नाम से कई लोग अनुसरते हैं और जाने-अनजाने में वे निदान शल्य बाँधते हैं। जैसे कि हम जब टीवी, सिनेमा, नाटक इत्यादि देखते हुए कुछ बातें तय कर लेते हैं। उदाहरण - हमको टीवी, सिनेमा, नाटक इत्यादि का कोई पात्र पसन्द आ गया, कोई बंगला या फ्लेट या फ़र्नीचर पसन्द आ गया, कोई प्रसंग पसन्द आ गया, कोई वक्ता/वक्तव्य पसन्द आ गया, कोई ज़ेवर या कपड़े पसन्द आ गये या अन्य कुछ भी पसन्द आ गया और हमने सोच लिया कि ऐसा मुझे भी मिले या मेरा भी ऐसा हो तब उसे निदान कहा जाता है, उसमें अगर जिसके पुण्य हो तो वैसा बंगला आदि मिलता है और अगर पुण्य कम हो तो हम उस बंगले आदि को नौकर बनकर पाते हैं, अगर उतना भी पुण्य नहीं है तो हम पालतू प्राणी बनकर या मकड़ी-चींटी इत्यादि बनकर भी उसे अवश्य पाते हैं। ऐसा प्रभाव है निदान का, इसलिये
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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