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सम्यग्दर्शन की विधि
धन्यवाद चिन्तवन करना। इससे उनके प्रति रोष, द्वेष, तुच्छपना, निन्दक भाव, घृणा इत्यादि का जन्म ही नहीं होगा, एकमात्र करुणा भाव होगा। जिससे हम नये कर्म बन्ध से बच जायेंगे, पुराने कर्मों का समताभावपूर्वक भुगतना हो जायेगा और अपनी प्रसन्नता बनी रहेगी; इसलिये ऐसे भाव सदैव स्वागत योग्य हैं, अर्थात् स्वागतम् ! स्वागतम् ! इस कारण हम नये पाप कर्मों से और दुःखी होने से भी बच जायेंगे जो हम अनादि से करते आये हैं, जिससे हम दुःखी हैं और कर्मों के दृष्चक्र में फंसे हुए हैं। (यह हुआ समभाव - संवर - सामायिक) यह है “धन्यवाद! स्वागतम् ! (Thank you! Welcome!)' का प्रभाव।
अगर हमें किसी के कारण आर्थिक या अन्य कोई भी नुकसान हो, तब यह सोचना है :
१. ओहो! मैंने भी ऐसा किसी का नुक़सान करवाया होगा! धिक्कार है मुझे ! धिक्कार है! ऐसे कार्य के लिये मिच्छामि दुक्कडं! उत्तम क्षमा! (यह हुआ प्रतिक्रमण)
२. अब के बाद मैं ऐसा कार्य कभी नहीं करूँगा, जिससे किसी का नुकसान हो! नहीं ही करूँगा! (यह हुआ प्रत्याख्यान)
३. ऐसा नुक़सान करानेवाले को अपने पाप कर्मों की सफाई करने में मदद करनेवाला उपकारी मानकर, उनके लिये मन में धन्यवाद चिन्तवन करना। इससे उनके प्रति रोष, द्वेष, तुच्छपना, निन्दक भाव, घृणा इत्यादि का जन्म ही नहीं होगा, एकमात्र करुणा भाव होगा। इससे हम नये कर्म बन्ध से भी बच जायेंगे, पुराने कर्मों का समताभावपूर्वक भुगतना हो जायेगा और अपनी प्रसन्नता बनी रहेगी; इसलिये ऐसे भाव सदैव स्वागत योग्य हैं, अर्थात् स्वागतम् ! स्वागतम् ! इस कारण हम नये पाप कर्मों से और द:खी होने से भी बच जायेंगे जो हम अनादि से करते आये हैं और जिनसे हम दुःखी हैं और कर्मों के दुष्चक्र में फंसे हुए हैं। (यह हुआ समभाव - संवर - सामायिक) यह है “धन्यवाद! स्वागतम् ! (Thank you! Welcome!)' का प्रभाव।
अगर अपना आर्थिक या अन्य कोई भी नुक़सान ख़ुद के कारण होता है, तब यह सोचना
१. मेरे इस जन्म में कमाया हुआ धन या अन्य कोई भी वस्तु मेरे पिछले कर्मों का हिसाब चुकाने में काम आया। जैसे कि हम अगर किसी से ऋण (loan) लेते हैं और जब वह वापिस जमा करा देते हैं, तब हमें आनन्द होता है, सन्तोष होता है कि हम ऋणमुक्त हो गये। इसी तरह यह भी हमारा अगले कई जन्मों में लिया गया ऋण ही है, लेकिन वह बात हम भूल गये होने से हमें दुःख होता है।