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सम्यग्दर्शन के लिये योग्यता
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से भी बच जायेंगे जिन्हें हम अनादि से करते आये हैं, जिससे हम दुःखी हैं और कर्मों के दुष्चक्र में फँसे हुए हैं। (यह हुआ समभाव - संवर - सामायिक) यह है “धन्यवाद! स्वागतम् ! (Thank you! Welcome!)' का प्रभाव।
अगर हम किसी पापी को देखें, तब यह सोचना है :
१. ओहो! मैंने भी ऐसे पाप अनेक बार किये होंगे और अगर मैं इस भव में सम्यग्दर्शन प्राप्त करके जल्द ही संसार से मुक्त नहीं होता तो ऐसे पाप अनेक बार कर सकता हूँ! धिक्कार है मुझे! धिक्कार है! ऐसे पापों के लिये मिच्छामि दुक्कडं! उत्तम क्षमा! (यह हुआ प्रतिक्रमण)
२. अब के बाद मैं ऐसे पाप कभी नहीं करूँगा! नहीं ही करूँगा! (यह हुआ प्रत्याख्यान)
३. ऐसे पापी को अपने पाप कर्मों की याद दिलानेवाला और वैसे कर्मों की सत्ता में रहते हुए ही सफ़ाई करने में मदद करनेवाला उपकारी मानकर, उनके लिये मन में धन्यवाद चिन्तवन करना। इससे उनके प्रति रोष, द्वेष, तुच्छपना, निन्दक भाव, घृणा इत्यादि का जन्म ही नहीं होगा, एकमात्र करुणा भाव होगा। इससे हम नये कर्म बन्ध से बच जायेंगे, पुराने कर्मों का समताभावपूर्वक भुगतना हो जायेगा और अपनी प्रसन्नता बनी रहेगी; इसलिये ऐसे भाव सदैव स्वागत योग्य हैं, अर्थात् स्वागतम् ! स्वागतम् ! इस कारण हम नये पाप कर्मों से और दु:खी होने से भी बच जायेंगे जो हम अनादि से करते आये हैं, जिससे हम द:खी हैं और कर्मों के दष्चक्र में फँसे हए हैं। (यह हुआ समभाव - संवर - सामायिक) यह है “धन्यवाद! स्वागतम् ! (Thankyou!Welcome!)" का प्रभाव।
अगर हम किसी गन्दगी या गन्दले को देखें, तब यह सोचना है :
१. ओहो! मैंने भी ऐसी गन्दगी में अनेक बार जन्म लिया होगा और अगर मैं इस भव में सम्यग्दर्शन प्राप्त करके जल्द ही संसार से मुक्त नहीं होता तो ऐसी गन्दगी में मुझे अनेक बार जन्म लेना पड़ सकता है! धिक्कार है मुझे! धिक्कार है! ऐसे पापों के लिये मिच्छामि दुक्कडं! उत्तम क्षमा! (यह हुआ प्रतिक्रमण)
२. अब के बाद मैं ऐसा पाप कभी नहीं करूँगा, जिससे मुझे गन्दगी में जन्म लेना पड़े! नहीं ही करूँगा! (यह हुआ प्रत्याख्यान)
३. ऐसी गन्दगी को या गन्दले को अपने पाप कर्मों की याद दिलानेवाला और वैसे कर्मों की सत्ता में रहते हुए ही सफ़ाई करने में मदद करनेवाला उपकारी मानकर, उनके लिये मन में