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________________ सम्यग्दर्शन के लिये योग्यता 95 गुणों का प्रमोद करना असम्भव ही होगा क्योंकि उस जीव को अपना-परायापन और पसन्दनापसन्दगी के तीव्र भाव होने से वह जीव सभी जीवों के गुणों से प्रमुदित नहीं हो पायेगा। वह जीव अपने सम्प्रदायवालों के गुणों से तो शायद प्रमोद कर भी लेगा, मगर अन्यों के तो अवगुण ही देखता रहेगा और उन अवगुणों को भी बढ़ा-चढ़ाकर प्रकाशित करता रहेगा। ऐसे भाव अध्यात्म के लिये घातक होने से ही ज्ञानियों ने मत-पन्थ-सम्प्रदाय के पक्ष, आग्रह, हठाग्रह या दुराग्रह का सेवन करने से रोका है। फिर भी अगर कोई जीव एक सम्प्रदाय विशेष का आग्रह रखकर, उसी सम्प्रदाय विशेष में सम्यग्दर्शन है ऐसा मानकर अध्यात्म मार्ग में आगे बढ़ना चाहता है तो यह, उस जीव की बहुत बड़ी ग़लती होगी और उसे अध्यात्म मार्ग तो दर संसार में भी शान्ति और प्रसन्नता मिलना-टिकना कठिन हो जायेगा। ३. करुणा :- आध्यात्मिक दया। अधर्मी जीवों के प्रति, विपरीत धर्मी जीवों के प्रति, अनार्य जीवों के प्रति, दीन-दुःखी जीवों के प्रति करुणा भाव सँजोना। इस हण्डा अवसर्पिणी पंचम काल में जैन समाज में भी कई विकतियाँ पैठ गई हैं फिर अन्य धर्म की तो बात ही क्या। उन विकति फैलानेवालों के प्रति और उनके अनुयायियों के प्रति हमें गुस्सा या द्वेष करना योग्य नहीं परन्तु करुणा भाव रखना योग्य है। इससे हमारी प्रसन्नता अखण्ड बनी रहेगी और हम पापबन्धन से भी बच जायेंगे। परन्तु जिस जीव को मत-पन्थ-सम्प्रदाय का पक्ष, आग्रह, हठाग्रह या दुराग्रह होगा, उस जीव के लिये सभी जीवों के प्रति करुणा रखना असम्भव ही होगा क्योंकि उस जीव को अपना-परायापन और पसन्द-नापसन्दगी के तीव्र भाव होने से वह जीव सभी जीवों के प्रति करुणा बुद्धि नहीं रख पायेगा। वह जीव अपने सम्प्रदायवालों के ऊपर शायद करुणा कर भी लेगा, मगर अन्यों के लिये तो वह तिरस्कार, रोष और तुच्छपने का ही भाव करेगा। ऐसे भाव अध्यात्म के घातक होने से ही ज्ञानियों ने मत-पन्थ-सम्प्रदाय के पक्ष, आग्रह, हठाग्रह या दुराग्रह सेवन करने से रोका है। फिर भी अगर कोई जीव एक सम्प्रदाय विशेष का आग्रह रखकर, उसी सम्प्रदाय विशेष में सम्यग्दर्शन है ऐसा मानकर अध्यात्म मार्ग में आगे बढ़ना चाहता है तो यह, उस जीव की बहुत बड़ी ग़लती होगी और उसे अध्यात्म मार्ग तो दूर संसार में भी शान्ति और प्रसन्नता मिलनाटिकना कठिन हो जायेगा। ४. माध्यस्थ्य भाव :- आध्यात्मिक अभिप्रायपूर्वक उदासीनता। हमने सब जीवों के प्रति परम कल्याणमय मैत्री का भाव सँजोया है, लेकिन जो हमें अपना दुश्मन मानते हैं, वे लोग हमारे साथ कुछ भी ग़लत व्यवहार कर सकते हैं। तब हमें उनके प्रति गुस्सा या द्वेष न करके, उनके
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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