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________________ और बुरे शब्द पर द्वेष करना नहीं, वैसे ही 2. रूप पर 3. गंध पर 4. रस पर और 5. स्पर्श पर रागद्वेष नहीं करना । (26) छब्बीसवें बोले - छब्बीस उद्देशक - दशाश्रुत-स्कन्ध के 10, बृहत्कल्प के 6 और व्यवहार सूत्र के 10 (इनमें साधु का विधिवाद है) । (27) सत्तावीसवें बोले - साधु के सत्ताईस गुण-पाँच महाव्रतों का पालन, पाँच इन्द्रियों का निग्रह करना, चार कषाय का विजय करना (5 + 5 + 4 = 14) 15 भाव सत्य, 16 करण सत्य, 17 योग सत्य, 18 क्षमा, 19 वैराग्य, 20 मन:समाधारणता, 21 वचन-समाधारणता, 22 काय - समाधारणता, 23 ज्ञान सम्पन्नता, 24 दर्शन सम्पन्नता, 25 चारित्र सम्पन्नता, 26 वेदना सहिष्णुता और 27 मरण सहिष्णुता । (28) अट्ठाईसवें बोले- आचार कल्प अट्ठाईस प्रकार का1. एक मास का प्रायश्चित्त 2. एक मास और पाँच दिन का 3. एक मास और दस दिन का । इसी प्रकार पाँच-पाँच दिन बढ़ाते हुए पाँच महीने तक कहना । इस प्रकार पच्चीस उद्घातिक आरोपणा है, 26. अनुद्घातिक आरोपणा 27. कृत्स्न (सम्पूर्ण) आरोपणा और 28. अकृत्स्न (अपूर्ण) आरोपणा । 80
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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