SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (29) उनतीसवें बोले-पाप श्रुत 29-1. भौमश्रुत-भूमि के विकार, भूकम्प आदि का फल-वर्णन करने वाला निमित्त-शास्त्र। 2. उत्पातश्रुत-अकस्मात् रक्त-वर्षा आदि उत्पातों का फल बताने वाला निमित्त शास्त्र। 3. स्वप्नश्रुत-शुभ-अशुभ स्वप्नों का फल वर्णन करने वाला श्रुत। 4. अन्तरिक्षश्रुत-आकाश में विचरने वाले ग्रहों के युद्धादि होने, ताराओं के टूटने और सूर्यादि के ग्रहण आदि का फल बताने वाला श्रुत है। 5. अंगश्रुत-शरीर के विभिन्न अंगों के हीनाधिक होने और नेत्र, भुजा आदि के फड़कने का फल बताने वाला श्रुत। 6. स्वरश्रुत-मनुष्यों, पशु-पक्षिओं एवं अकस्मात् काष्ठपाषाणादि-जनित स्वरों (शब्दों) को सुनकर उनके फल को बताने वाला श्रुत। 7. व्यंजनश्रुत-शरीर में उत्पन्न हुए तिल, मषा आदि का फल बताने वाला श्रुत। 8. लक्षणश्रुत-शरीर में उत्पन्न चक्र, खङ्ग, शंखादि चिह्नों का फल बताने वाला श्रुत। भौमश्रुत तीन प्रकार का है, जैसे-सूत्र वृत्ति और वार्त्तिक। 1. अंगश्रुत के सिवाय अन्य मतों की सहस्र पद-प्रमाण रचना को सूत्र कहते हैं। 2. उन्हीं सूत्रों की लक्ष-पद-प्रमाण व्याख्या को वृत्ति कहते हैं।
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy