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(25) पच्चीसवें बोले-पाँच महाव्रत की पच्चीस भावना।
पहले महाव्रत की पाँच भावना-1. ईर्यासमिति भावना 2. मन-समिति भावना 3. वचनसमिति भावना 4. एषणासमिति भावना और 5. आदानभाण्ड-मात्र-निक्षेपणा समिति भावना।
दूसरे महाव्रत की पाँच भावना-1. बिना विचार किये बोलना नहीं 2. क्रोध से बोलना नहीं 3. लोभ से बोलना नहीं 4. भय से बोलना नहीं और 5. हास्य से बोलना नहीं।
तीसरे महाव्रत की पाँच भावना-1. निर्दोष स्थानक याच कर लेना 2. तृण आदि याच कर लेना 3. स्थानक आदि के क्षेत्र की सीमा-निर्धारण पूर्वक आज्ञा लेना 4. रत्नाधिक की आज्ञा से तथा आहार का संविभाग करके आहार करना 5. उपाश्रय मे रहे हुए संभोगी साधुओं से आज्ञा लेकर रहना तथा भोजनादि करना।
चौथे महाव्रत की पाँच भावना-1. स्त्री, पशु, नपुंसक सहित स्थानक में ठहरना नहीं 2. स्त्री सम्बन्धी कथा-वार्ता करना नहीं 3. स्त्री के अंगोपांग, राग दृष्टि से देखना नहीं 4. पहले के काम-भोग याद करना नहीं और 5. सरस तथा बल-वर्धक आहार करना नहीं।
पाँचवें महाव्रत की पाँच भावना-1. अच्छे शब्द पर राग
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