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20. एक वर्ष में दस बार माया (कपट) करे।
21. सचित्त जल से भीगे हुए हाथ से गृहस्थ, आहारादि देवे और उसे जानता हुआ ले कर भोगवे।
(22) बाईसवें बोले-परीषह बाईस प्रकार के-1. क्षुधा 2. तृषा 3. शीत 4. उष्ण 5. डाँस-मच्छर 6. अचेल (वस्त्र रहित या अल्प वस्त्र) 7. अरति 8. स्त्री 9. चर्या-चलने का 10. निषद्या-स्थिर आसन लगा कर उपद्रवजनक स्थान पर बैठे रहने का 11. शय्या-उपाश्रय का 12. आक्रोश 13. वध (प्राणनाश) 14. याचना 15. अलाभ (आवश्यक वस्तु का नहीं मिलना) 16. रोग 17. तृण स्पर्श 18. जल्ल (पसीना तथा मैल) 19. सत्कार-पुरस्कार 20. प्रज्ञा 21. अज्ञान और 22. दर्शन परीषह।
(23) तेईसवें बोले-सूत्रकृतांग के 23 अध्ययन-प्रथम श्रुतस्कन्ध के 16 अध्ययन तो सोलहवें बोल में हैं। दूसरे श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन-1. पुण्डरीक कमल 2. क्रियास्थान 3. आहारपरिज्ञा 4. प्रत्याख्यान परिज्ञा 5. अनगारसुत्त 6. आर्द्रकुमार और 7. उदकपेढाल पुत्र।
(24) चौबीसवें बोले-देव चौबीस प्रकार के-10 भवनपति, 8 व्यन्तर (पहले से आठवें तक), 5 ज्योतिषी और 1 वैमानिक-ये कुल 24 हुए।
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