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________________ 7. त्याग कर बार-बार तोड़े। 8. छह-छह महीने में गण-संप्रदाय-पलटे। 9. एक मास में तीन बार कच्चे जल का स्पर्श करे-नदी उतरे। 10. एक मास में तीन बार माया (कपट) करे। 11. जिसके मकान में रहे हों, उसी के यहाँ का आहार करे (शय्यातर-पिण्ड भोगवे)। 12. जानबूझ कर हिंसा करे। 13. जानबूझ कर झूठ बोले। 14. जानबूझ कर चोरी करे। 15. जानबूझ कर सचित्त-पृथ्वी पर शयन-आसन करे। 16. जानबूझ कर सचित्त-मिश्र पृथ्वी पर शय्या आदि करे। 17. सचित्त शिला तथा जिसमें छोटे-छोटे जन्तु रहे, वैसे काष्ठ आदि वस्तु पर अपना शयन-आसन लगावे। 18. जानबूझ कर दस प्रकार की सचित्त वस्तु खावे-मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज । 19. एक वर्ष में दस बार सचित्त जल का स्पर्श करे-नदी उतरे। 77
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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