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________________ 5 - 51 नथी, आवुं सांभळी तेओ सर्वे लज्जा पाम्या, नीचा मुख करीने रह्या, एटले अभयकुमारे तिरस्कार करी कह्युं के, रे रे ! दुष्टो ! पारकानुं मांस भक्षण करनाराने मांस सुलभ छे तेवुं बोलता तमोने शरम नथी आवती के, जेने पोतानुं मांस व्हालुं लागे छे तो ते प्रमाणे परने पोतानुं मांस व्हालुं नहि लागतुं होय के, ते विचारा निरपराध जीवोने प्राणथी रहित करी तेना मांसने भक्षण करो छो ? तेवा अभयकुमारना वचनथी मांसने त्याग करी मांसभक्षणना तमामे प्रत्याख्यान कर्या, तेथी व्या फरीथी पण अभयकुमारे कधुं के यतः ख्या न षां स्वमांसं दुर्लभं लोके, लक्षेणापि न लभ्यते । अल्पमूल्येन लभ्येत, पलं परशरीरजं ॥ १ ॥ भावार्थ:- लोकने विषे लाख सोनामहोरोथी पण नहि मलतु पोतानुं ज मांस दुर्लभ होय छे अने परनु मांस ज अल्प मूल्यथी मेलवी शकाय छे, आवी रीते उपदेश करी मांस भक्षण छोडावी घणा जीवोने जीवदया पालनारा बनाव्या. ते जाणी वर्त्तमान समयना जीवोये पण जीवदयानुं प्रतिपालन करवा चुकवुं नहि. हवे बीजं सुपात्रदान कहे छे. सुपात्र मुख्य वृत्तिथी जिनेश्वर महाराजानी आज्ञा पालनारा साधु-साध्वी, श्रावकश्राविका कल छे. तेमां पण कंचनकामिनीना त्यागी, पंचमहाव्रतने पालनारा, षड्जीवनिकायना रक्षण करनारा, सात भयना निवारण करनारा, आठ प्रवचन माताना प्रतिपालन करनारा, नवविध ब्रह्मचर्यने वहन करनारा अने दशविध यति मार्गनुं आचरण करनारा, निरंतर ज्ञान ध्यानमां रक्त रहेनारा, नानाविध तप कर्मनुं आलंबन करी कर्मक्षीण करवामां कटीबद्ध थइ, संसारी मनुष्योना परिचयादिकने त्याग करी, एकांत रीते संयमक्रिया अनुष्टानने विषे अप्रमत्तपणे वर्त्ति, स्वपर 5 5 5 5 5
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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