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चौमासी
व्या
ख्यान ॥
॥ ४७ ॥
मा
दृष्टान्त बीजं.
राजगृह नगरने विषे श्रेणिक राजा राज्य करतो हतो, ते एकदा प्रस्तावे सभा भरीने बेठो हतो, तेथी तेणे सभासदोने पूछयु के, हालमा नगरने विषे स्वादिष्ट ने सुंदर वस्तु शी मले छे, एटले क्षत्रीवर्गे कां के हालमां स्वादिष्ट वस्तु मांस बहु सोंधु मळे छे. आवा वचनो सांभळी अभयकुमार मनमां चिंतवना करे छे के, आ तमाम लोको निर्दय छे माटे ज्यां सुधी तेने शिक्षा नहि थाय, त्यांसुधी हिंसाने तथा मांस भक्षणने छोडशे नहि, आवी विचारणा करी रात्रिने विषे तमाम का क्षत्रियोना घरने विषे जड़ तमाम जुदा जुदाने कधुं के, आजे राजाना शरीरमां महा व्याधि उत्पन्न थयो छे, बहु उपाय स्या कर्या पण शान्ति थती नथी, वैद्योये कहेलं छे के माणसना काळजानुं मांस फक्त वे टांक मात्र जो दवाना साथे वापरशे तो ज तेने सारु थशे, शिवाय नहि. माटे तमो लोको राजानो पगार खाइने जीवो छो, माटे जल्दी वे टांक तमारा काळजानुं मांस आपो, कारण के तेम करवाथी ज तमो राजभक्तो गणाशो, अभयकुमारना वचनो सांभळी क्षत्रीयो ठरी ज गया. एके कं के हजार सोनामहोर ल्यो पण मने मुकीदो, बीजाने घेरथी मळशे, तेम कहेवाथी अभयकुमार सोनामहोर लड़ बीजे घरे गयो, त्यां पण तेवी ज रीते थयुं, आवी रीते अभयकुमारे सारी रात्री भमी भमीने एक लाख सोनामहोरो भेगी करी. ह प्रातःकाले राजानी सभा भराणी त्यारे अभयकुमारे आवीने सर्व सभा वच्चे सोनामहोरोनो ढगलो कर्यो. राजाये आश्चर्य पामीने स्व तेने पूछयुं के, आ सोनामहोरो तुं क्यांथी लाग्यो, त्यारे अभयकुमारे सर्वे क्षत्रियोने धमकावीने कधुं के, काले ज तमो कहता हता के मांस बहु सस्तु मळे छे ने आजे तो लाख सोनामहोरो आपता छतां पण फक्त वे टांक मात्र मांस पण मळतुं रू ॥ ४७ ॥
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