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________________ चौमासी व्या काठीयार्नु स्वरूप। ख्यान । ॥४८॥ 卐卐E卐卐9) जीवोने तरणतारण रूप काटनी नाव समान, जे महात्माओ होय छे, ते ज सुपात्र कहेवाय छे अने ते पापरहित महात्मा ओने वस्तु पात्र, वस्त्र, कांबल, औषध, पुस्तकादिनुं दान करवू तेनुं नाम ज सुपात्र दान कहेवाय छे. शिवाय मिथ्यात्व कुज्ञान कुशीलपणाने धारण करनारा होय छे ते, तथा मंत्र तंत्र जंत्र यंत्र करी मारण मोहनस्थंभन उच्चाटन करी वशीकरणादि क्रियायुक्तं औषधादिक करी अनेक प्रकारना पापारंभ रक्त रही, निमित्तज्योतिष्य सामुद्रिकशास्त्रथी अनुग्रहनिग्रह करी, प्रचुर | पापकर्मवाला अढारे पापस्थान सेवी पथ्थरनी नाव समान थइ, स्वपरने बुडाडवावाला थाय छे, तेओने कुगुरु कहेला छे अने आवाओने सद्गुरुनी बुद्धिथी सुपात्र मानी दान आपनारा जीवो बुडे छे, माटे ज उपरोक्त प्रकारे कहेल सुशील महात्माओने जे दान आपq ते ज सुपात्र दान कहेवाय छे. जेम चंदनवालाये भगवान् महावीरस्वामी महाराजने यादृश तादृश अडदना ज बाकला कल्पनीय शुद्ध व्होराव्या तो ते भगवाननी प्रथम साध्वी थइ, मोक्ष सुखने पामी, तेम ज सत्पात्रने विषे कल्पनीय दान आपवाथी जीवो मोक्ष सुखने पामे छे, मानव लोक अने स्वर्ग लोकना सुखोने हेला मात्रमा प्राप्त करी, लीला मात्रमा मुक्तिना सुखोने सुपात्रदान आपनारा जीवो मेळवे छे, तेथी वीतराग महाराजाये अभयदान अने सुपात्रदानने महान् गणेला छे. हवे त्रीजा अनुकंपादानने कहे छे. अनुकंपा एटले दया. कोइ अतिथि अभ्यागत याचक जीव आपणां घर प्रत्ये आवेल होय, तो अंतरमा अनुकंपा लावी तेने कांइने कांइ आपीने पाछो वाळवो, परंतु खाली जवा देवो नहि, कारण के तेम करवाथी कदाच ते मिथ्यात्वी वर्ग पासे जइ निंदा जुगुप्सा करे तो, जैनशासननी निंदा उड्डाहना थाय, वळी जिनेश्वर महाराजाये पण अनुकंपादान निषेध करेल नथी, परंतु मान्य करेल छे. माटे ज दीन दुस्थित कोइपण होय तो पण अनुकंपा ॥४८॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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