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________________ 19 E जीवना साथे चोरी पण जात, अने दुर्गति थात. तो म्हारे मरीने पण चोरी मुकवी तो पडत ज. त्यारे आ तो तुं मने कुगतिथी तथा मरणथी बचावीने चोरीना प्रत्याख्यान करावे छे, तो हुँ केम चोरी नहि त्याग करूं, अर्थात् करीश ज, तुं म्हारे मातापिता बंधव समान छे. किंबहुना ? तुं म्हारे परमदेव अने उत्कृष्ट गुरु समान छ, त्हारुं वचन म्हारे प्रमाण छ, एम कही राणीनी प्रशंसा करवा लाग्यो. हवे साते राणीयो मेगी थइ आठमीने कहेवा लागी के, अमे तेने खानपान अने वस्त्रालंकारनुं सुख आप्यु छे, तें तो कोइ कयुं नथी, एटले आठमी बोली के में सुख तेने आप्यु तेवु तमे कोइये आप्युं नथी, आवी रीते आठेने परस्पर झगडो करती देखीने राजाये चोरने कह्यु के, कहे भाइ ! तने खलं सुख कोणे आप्युं छे, त्यारे ते बोल्यो हे महाराजा ! आ तमारी साते राणीयोये मने एक एक करता अधिक रीते खानपान वस्त्रालंकारथी पोषेल छ, पण म्हारे माथे मरवानो भय होवाथी में ते सुखने किंचित् मात्र पण जाणेल नथी, पण आजे तमारी आठमी राणीये जीवित| दान आप्युं छे, तेथी हुँ स्वर्गनुं सुख मार्नु छ. चोरना आवा वचन सांभली राजा प्रसन्न थयो ने अणमानेतीने महापुन्यशाली मानी तेने पटराणी पदे स्थापी. देखो जीवोनी दया पालवाना फल प्रत्यक्ष आलोकने विषे ज पामे छे, चोर पण राणीने पगे लागीने गयो अने कोइ सुगुरु पासे जइ दिक्षा लीधी, पालीने देवलोके गयो. अवधिज्ञानथी जाणीने पोताना | धर्मगुरु ते राणीना पासे आवी नमस्कार करी पोतानुं स्वरूप कही तथा इहलोक परलोक म्हारो तमे ज सुधार्यो छे, तेनो बदलो म्हाराथी तमारो भवोभवने विषे पण वले तेम नथी, एम कही स्वर्गे गयो, अने राणी पण अभयदानना प्रतापथी सद्गतिगामी थइ, माटे ज उत्तम जीवोये जीवदयार्नु अवश्य प्रतिपालन करवू, वली पण कयुं छे के gy). shay4134) I
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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