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________________ 計 听印騙財騙騙騙"听叫呱叫: निगोदादिक दुष्ट गतिने विषे लांबा काल सुधी वास करे छे, अने कदाच मानव गति पामे छे तोपण हीन कुलने विषे उत्पन्न थाय छे. वामणो कुबडो जड खंज लुलो लंगडो बाडो बोबडो तोतडो मुंगो अंध अंगोपांग हीन कुकंठी कुरूपी कुनरखी कुटिल गतिवालो कुटिल केशवालो वक्र मुखवालो लांबी नासिकावालो मोटा कानवालो पोहोला जाडा होठवालो ज्वर, कास, श्वास, भगंदर, राजयक्ष्मा रोगवालो, हीन पुन्य, लोकोने नहि रुचवावालो, स्वल्प आयुषवालो अने केवल मानुष्यना भवने विषे पण नरकना दुःखोने एकांत रीते भोगवनारो थाय छे अने अनंत संसार रखडनारो थाय छे, पण कोइ पण भवने विषे संसारना पारने पामवावालो थतो नथी माटे सुज्ञ जीवोये जीवहिंसाना महा रौरव फलने निहाली, जाणी, वांची, सांभली समजी कोइ दीवस हिंसाने करवी नहि, पण अहिंसा दयार्नु ज प्रतिपालन करवू, कारण के दया जे ते प्राणियोने एकांत रीते महा हित करनारी छे. दया मनुष्योने रूप, बल, वैभव, ऋद्धि, सिद्धि, कीर्ति, कांति, यशस्वीपणु, तेजस्वीपणुं, वचस्वीपणुं, त्यागीपणुं, भोगीपणुं, निरोगीपणुं, दीर्घ आयुष मानुष्य जन्मने विषे पण वासुदेव, बलदेव, चक्रवर्तिपणु, तेम ज देव देवेंद्र विद्याधरनी पदवीओ आपे छे, आदेय नामपणुं आपे छे, तेम ज अति दुर्लभ एवं तीर्थकर पदने पण आपे छे, माटे ज सुशील जीवोये यावज्जीव सुधी जीवदयार्नु प्रतिपालन करवू. जीवदयाना प्रतिपालनथी जीवो | आ भवने विषे ज प्रत्यक्ष सुख देखे छे. दृष्टान्तो यथा. कोइ एक.नगरने विषे एक राजाने सात राणीयो प्रिय हती अने एकना उपर अप्रीति थवाथी तेने अलग करी, पोतानी
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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