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चौमासी
च्या
काठीयार्नु स्वरूप॥
ख्यान ॥
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शकाय छ। तराग महाराजे जाइये, मोहजन्य विटमा पूर्णिमा, तथा अभाव तथा चैत्र शुदि से
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करी विशुद्ध कीर्तिने फेलावनारुं छे, शीयल केवल मुक्तिना हेतुभूत छे, किंबहुना ? शीयल साक्षात् कल्पद्रुमना समान छै. वळी पण कयु छ केशीलेन प्राप्यते सौख्यं शीलेन विमलं यशः शीलेन लभ्यते मोक्षः, तस्मात् शीलं वरं व्रतम् ॥२॥
भावार्थ:-शीयलथी सुखनी प्राप्ति थाय छे, शीयल थकी निर्मल यश मळे छे, तेम ज मोक्ष पण शीयलथी ज मेळवी शकाय छे, माटे शीयलने उत्तममा उत्तम व्रत कहेल छ, आq जाणी उत्तम जीवोये शीयलना प्रतिपालनने विषे आदरवाळा थर्बु जोइये, वीतराग महाराजे ब्रह्मचर्यना प्रतिपालन करवाने विषे अथाग लाभ कहेल छे. तेथी करी दरेक स्त्री पुरुषोने चोथा व्रतना पच्चखाण करवा जोइये, मोहजन्य विटंबनाथी तेम कदाच न बनी शके तो एक मास अंदर रहेली तिथियो, बे बीज, बे पांचम, बे आठम, बे अग्यारश, बे चौदश, पूर्णिमा, तथा अमावास्या ए प्रकारे बार तिथियोने विषे जरुराजरुर ब्रह्मचर्यनुं प्रतिपालन करवू, तेम ज फागण शुदि सातमथी पूर्णिमा सुधी १ तथा चैत्र शुदि सातमथी पूर्णिमा सुधी २ तथा अशाड शुदि सातमथी पूर्णिमा सुधी ३ तथा श्रावण वदि बारशथी भादरवा शुदि चोथ सुधी ४ तथा आसो शुदि सातमथी पूर्णिमा सुधी ५ तथा कार्तक शुदि सातमथी पूर्णिमा सुधी ६ आ छ अठाइयोने विषे अवश्य ब्रह्मचर्य, प्रतिपालन करवू. वली पोताने जे दिवसे एकास' आंबिल बेसणुं होय उपवासादिक तपस्या होय त्यारे पण ब्रह्मचर्य अवश्य पालवू, वेश्या परस्त्रियादिकना सर्वथा प्रकारे पञ्चखाण करवा अने स्वस्त्रीने विषे पण नियम करवो, आवी रीते कर्याथी वीतरागनी आज्ञानुं प्रतिपालन थाय छे. शरीरमा बल टकी रहे छे, रोगादिक उत्पन्न थता नथी, तेथी महानुभाव जीवो दीर्घायुषी थइ, विशेष
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