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________________ 卐卐y卐卐卐卐卐卐। धर्मक्रिया करी, घणा कर्मनो नाश करी, शुभ गतिना भोक्ता थाय छ, माटे सुज्ञ जीवोये सुदर्शनना पेठे अवश्य ब्रह्मचर्यन पालन करवू, परंतु प्राणांते पण शीयलने खंडन करवू नहि. ब्रह्मचर्यना खंडन करनारा, इह लोकना अंदर धिक्कार, तिरस्कार फिटकारने पामे छे, परलोकने विषे नरकादिक कुगति, तथा स्वल्प आयुष्य, कुरूप, निर्धनता, अपयश, निरंतर रोगीपणुं, अवहीलना अने कोटी दुःखनी परंपराने पामे छे. एवं समजी भाग्यशाली जीवोये ब्रह्मचर्य पाळवा उजमाल थq. केटलायेक जीवोये ब्रह्मचर्यना प्रत्याख्यान करेल होय छे, तो पण स्वजाति तेम ज विजातिनी स्त्रीयोनी मश्करी करे छे, अने तेम करता हास्यचेष्टा, स्पर्श अने ब्रह्मचर्य खंडन करता शीखे छे, कारण के ब्रह्मचर्य खंडनना मुख्य कारणो खास करीने मश्करी ने हांसी ज छे, माटे ज दरेक जीवोये हांसी, ठट्ठा, मश्करी, स्त्रीयोये पुरुषोनी अने पुरुषोये स्त्रीयोनी, करवी ज नहि. एटले पोताना ब्रह्मचर्यनो नियम अखंडपणे पालि शकाय. माटे भविष्यना लाभनी इच्छा करनारा जीवोये, अतिचार दोषादिक न लागे, ते प्रकारे ब्रह्मचर्यन प्रतिपालन करवू. सुदर्शन दृष्टान्तो यथा चंपा नगरीने विषे ऋषभदास श्रेष्टि वास करतो हतो, तेने सुशील अने पतिभक्ता अर्हदास नामनी स्त्री हती, अन्यदा प्रस्तावे माघ मासने विषे सुभग नामनो तेनो महिषीपाल जे हतो ते श्रेष्टिनी भेशोने चारो चरावी घरे आवतो हतो, तेवामां सायंकाले मार्गने विषे वस्त्र रहित मुनिने शीतथी पीडा पामेला काउस्सग्ग ध्यानने विष रहेला देख्या. तेथी तेनी प्रशंसा करी अने घरे आव्यो, त्यारबाद रात्रिने वहन करी प्रातःकालने विषे वहेलो उठी भेशो लइने चाल्यो,
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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