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________________ चौमासी विषे गयो, आवी रीते एक नोकरनो जीव पण प्रभु पूजाना दृढ ध्यानथी राज्य पाम्यो अने तीर्थकर नामकर्म बांधवावाळो थयो, दिक्षा लीधी अने स्वर्गे गयो. तो वर्तमान कालना जैन बच्चाओने विचार करवानो छे के, पोते जैन छतां परमात्मानुं ख्यान ॥ सी पूजन नथी करता ते केटलं शोचनीय छे, श्रावक वर्गने परमात्माना दर्शन पूजा विना मुखने विषे पाणि नाखवं पण कल्पे नहि. तो जेओ पूजा नथी करता तेओ रात्रि दिवस खानपान करे छे ने पोताना दिवसोने व्यर्थ गुमावे छे, आ केवुं ॥ ४१ ॥ लज्जास्पद छे. जे परमात्मानी पूजा सन्मति आपनारी छे, कुमति कापनारी छे, रागरोषादिकने नाश करनारी छे, मोहने द्रोह करनारी छे, इच्छित सुख अर्पण करी दुःख दौर्भाग्य दालिद्रने दली नाखनारी छे, तेम ज तिर्यच निगोद नरकगतिनो स्या रोध करी, स्वर्गना सुख आपी, वासुदेव, बलदेव, तीर्थंकरोनी तेम ज देव-देवेंद्रनी पदवीयो आपी, जन्म, जरा, मरणना दुःखोने निवारण करी, मोक्षमां लइ जइ तेना अनंत सुखने प्राप्त करावनारी छे. तेवी पूजा दरेक उत्तम महानुभाव जैन जीवोये निरंतर साचा भावथी करवी जोइये, कर्मना योगे कोइपण प्रकारनी धर्म क्रिया कदाच मनुष्य न करी शके, तो पण शुद्ध भावनाथी एक ज परमात्मानी पूजा करे तो पण तेनो अंतर आत्महेलावडे करी संसारना पारने पामे छे, माटे दरेक मानवोए परमात्मानी पूजा करवानो नियम अंगीकार करी पोतानो मानव जन्म सफल करवो जोइये. | या नुं व्या 5∉5岢! मा | व्या ~555555 हवे ब्रह्मचर्य १, दान २, तपकर्म ३ आदिनुं शास्त्रकार महाराजा विवेचन करे छे. ब्रह्मचर्य ते एक उत्तमोत्तम व्रत छे, एना समान बीजुं एक पण महान् व्रत नथी अने ते ज कारणथी शास्त्रकार महाराजाये ब्रह्मचर्यने समुद्रनी उपमा आपी छे अने बीजा व्रतोने नदीयोनी उपमा आपी छे, नदीयो जेम समुद्रने विषे मले छे, तेवी ज रीते बीजा नदीरूप तमाम व्रतो ते र का रू तेर काठीयानुं स्वरूप ॥ ४१ ॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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