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________________ ye चौमासी व्याख्यान ॥ काठीयार्नु स्वरूप ॥ ॥३८॥ 卐卐)卐y4 नारा, कर्मोंने क्षीण करी मोक्षनगरमां पहोंचाडनारा, प्रतिक्रमणने करता नथी, तेथी ते बिचारा अज्ञानि अने दया करवा लायक जीवो, संसारमा परिभ्रमण लांबा काल सुधी करनारा थाय छे. आवा प्रतिक्रमणमां रुचिमंद प्रीतिमंद जीवोने उपरतुं श्रेष्टिनुं दष्टांत खास करी मनन करवा लायक छ, एटलुज नहि पण ते प्रमाणे वर्तन करी आत्महित करवा उजमाल थर्बु ते ज श्रेयस्कर छे, हवे शास्त्रकार महाराजा पौषधना स्वरूपने कहे छे. जे धर्मनी पुष्टि करे ते कार्यने पौषध कहेवाय छे अने ते पौषधने शास्त्रकार महाराजा चार प्रकारना कथन करे छे. आहार पौषध, एटले आहारादिकना त्याग करवा रूप पौषध १, तथा बीजो शरीर सत्कार पौषध, एटले पौषध अंगीकार कर्या पछी कोइ पण प्रकारे शरीरने, सत्कार एटले स्नान मान तेल फुलेल लगाववा, वस्त्रालंकार विविध प्रकारना धारण करवा रूप क्रियाने निषेध करवा रूप बीजो शरीर सत्कार पौषध कहेवाय छ २, हवे त्रीजो गृह व्यापार पौषध, एटले पौषधने अंगीकार करनार माणस अढारे पापस्थाननो परिहार करनारो होय छे, तेथी तेने पौषध अंगीकार करी कोइ पण | प्रकारे मन, वचन, कायाना योगोथी संसार व्यापारनो योग करवू करावईं अने अनुमोदन करवू विगेरेमाथी एक पण प्रकारे | थइ शके नहि, ते गृह व्यापारना त्याग रूप त्रीजो पौषध कहेवाय छे ३. हवे चोथो अब्रह्म त्याग, एटले ब्रह्मचर्यना प्रतिपालनरूप चोथो पौषध कहेवाय छे, एटले के आ पौषधने विषे अब्रह्मने त्याग करी सर्वथा प्रकारे ब्रह्मचर्य, प्रतिपालन | करवू. मन, वचन, कायाने काबुमा राखवा, लवलेश मात्र पण इंद्रियोना विकारोने अवकाश आपवो नहि, ते अब्रह्म वर्जक चोथो पौषध कहेवाय छे ४. हवे शास्त्रकार महाराजा पौषधना फलने देखाडे छे. कयुं छे के: 卐卐卐卐卐卐A 4卐) 1॥ ३८॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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