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________________ * 卐 ' ' ' पोसहियसुहे भावे, असुहाइ खवेह नत्थि संदेहो, छिदेइ निरयतिरियगई/पोसहविहि अप्पमतेणं॥१॥ भावार्थ:-पौषधादिकने शुभ भावथी करनार अशुभादि कर्मोनो नाश करी शुभादि कर्मोने बांधे छे, तेमां काइ पण | संदेह नथी अने अप्रमत्तपणे पौषध करवाथी निश्चय नरकतिर्यच गतिनो रोध करे छे. पौषधव्रतने विषे स्थैर्यवृत्ति धारण करनार कामदेव श्रावकनुं दृष्टांत ढूंकामां शास्त्रकार महाराजा कहे छे. भगवान् महावीर स्वामि महाराजानो परम श्रावक कामदेव, बारव्रतोतुं प्रतिपालन करतो, श्रावकोनी पडिमानुं वहन करतो, ने पौषधादिकने पोतानी पौषधशालाने विषे धारण करी धर्म ध्यानमा तान लगावी बेठेल छे, आ समये इंद्र महाराजे तेनी पोतानी सभामा प्रशंसा करी के, पौषधव्रतमा स्थिरता धारण करनार कामदेवने अमारा जेवा इंद्रादिक पण तेने चलायमान करवा शक्तिमान् नथी, तो बीजानी तो गणना ज शी. आवा इंद्रना वचन सांभळी कोइक मिथ्यादृष्टिदेव इंद्रना वचनने नहि गणतो, चलायमान करवा कामदेव पासे रात्रिने विषे आव्यो अने दुष्ट हाथीना १, तथा सर्पना २, तथा व्यंतरना ३ विगेरेना अनेक प्रकारे रूपो करी बहु कदर्थना करी, पण ते शुद्ध श्रावक कामदेव मन वचन कायाथी लगार मात्र पण क्षोभ पाम्यो नहि, तेथी देव प्रत्यक्ष थइ इंद्र महाराज संबंधी बात करी तेने खमावी, पोते सम्यक्त्वने अंगीकार करी तेना देहने सारो करी स्वर्गे गयो अने कामदेव पण सम्यक् प्रकारे श्रावकोना बारव्रतोतुं प्रतिपालन करी अग्यार पडिमानुं वहन करी काल धर्मने पामी सौधर्म देवलोकने विषे अरुणाभ नामना वैमानने विषे चार पल्योपमना आयुषे देवपणे | उत्पन्न थयो, त्यांथी महाविदेहक्षेत्रने विषे जइ सिद्धि पामशे. 14 ' '
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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