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________________ चौमासी व्याख्यान ॥ काठीयार्नु स्वरूप॥ ॥३७॥ F卐卐y प्रतिक्रमणना नियमने विषे साजणसिंहना दृष्टांतने कहे छे. साजणसिंह नामना श्रावकने बन्ने वखत प्रतिक्रमण करवानो नियम हतो अने तेथी ते प्रतिक्रमण कर्या शिवाय बन्नेवार भोजन करतो नहि. एकदा पीरोज पातसाहने कोइये कह्यु के, आ श्रावक रोजे प्रतिक्रमणने करे छ, पोताना नियमने कोई दिवस छोडतो नथी, तेथी परीक्षा करवा निमित्ते एक दिवस कोइक राजाने जीतवाने माटे घणुं लश्कर आपीने तेने मोकल्यो, हवे पोताने नियम होवाथी लडाइ चालती होय तो पण पचास योद्धाओने आजुबाजु चोतरफ राखी पोते प्रतिक्रमण करी लेतो हतो, शत्रुने जीतीने आव्या बाद पीरोजशाहे श्रेष्टिना प्रतिक्रमणना समाचार कोइकने पूछया, | तेथी ते माणसे कयुं के साहेब अमो बीजं कांइ समजता नथी, पण प्रातःकाले तथा सायंकाले आ श्रेष्टि पोताना आजुबाजु सो पचास माणसो गोठवी दइ, एगेंदिया, बेइंदिया, आवा अक्षरोनो बबडाट करतो हतो, आवी रीते तेणे रोज सांज सवार निमाज पढेल छे, आq सांभळी पीरोजशाहने तेना उपर इर्ष्या थइ, तेथी कांइक अपराधना अंदर लावी, ते श्रेष्टिने केदखानामां नाख्यो अने विचायु के हवे केवी रीते प्रतिक्रमण करशे, ते हुं देखी लइश. दुनियामां घणां माणसो अदेखा, झेरीला ने इर्ष्याखोर होय छे के, जे बीजाना ज्ञानगुण सुख धर्म देखी शके नहि ने वीजा लोकोने भरमावे, फसावे अने खाडामां पडवा रूप कुबुद्धि आपे, निंदावे, भंडावे ने दंडावे, तेथी तेना ज जेवा भारेकर्मी जीवो होय, ते, तेना वचनथी हा भा हा करी बन्ने डूबनारा थाय छे. पारकानी इर्ष्याथी संसारमा रजळवार्नु सारुं माने छे अने पारकाना उपर मत्सर धारण करवामां सुख माने छ, धिक्कार छ ! आवा पारका सुखे दुःखीया थइ इर्ष्या करनार कुटिल मानवोने, हवे श्रेष्टिने ज्यारे yyyyy ॥३७॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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